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मूलाराधना
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ध्यते । णमो लोए सब्बेसि अरहंताणं, णमो लोए सव्वेसि सिद्धाणं, णमो लोएस आइरियाणं, णमो लोप सव्चसि उवज्झायाणं " इति । अरहंताणमित्यादि बहुवचननिर्देशादेव सर्वेषामदादीनां ग्रहणं सिद्धमतो न कर्तव्यं सर्वशन्दोपिभरतेषु तेषु विदेदेषु ये अतः सिद्धा, बायार्या, उपाध्यायाः साधयश्चातीता वर्तमाना, भविष्यंतच तेषां ग्रहणार्थं सर्वशब्द उपासः सादरविशेष स्थापनार्थ प्रत्येकं नमः शब्दोपादानं । अर्थ - नमस्कार इस पदका अर्थ इस प्रकार है. मनके द्वारा अर्द्धदादिकोंके गुणोंका स्मरण करना, वचनके द्वारा अर्हदादि पंच परमेष्टिओके गुणों का वर्णन करना, शरीर पंच परमेष्टिके चरणोंको नमस्कार करना यह नमस्कार शब्दका अर्थ है.
मी अरहंताणं इत्यादि नमस्कार सूत्रमें ' गमो लोए सव्व साहूणं ऐसा अन्तिम वाक्य हैं. इसमें लोक शब्द और सर्व शब्द इन दो शब्दोंका संबंध प्रत्येकके साथ करना चाहिये. अर्थात् णमो लोए सव्वेसि अरहंताणं, णमो लोए सव्वेसिं सिद्धाणं, णमो लोए सव्येसि आइरियाणं, णमो लोए सब्धेसि उवज्झायाणं ।
शंका-अरहंताणं, सिद्धाणं वगैरह में बहु वचनका प्रयोग होनेसे ही सर्व अईदादिकों का ग्रहण होता है। अतः सर्व शब्दकी जरूरत नही हैं.
उत्तर - ढाई द्वीपमें पांच भरत पांच ऐरावत और पांच विदेहों में जितने अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु हैं, हो गये हैं. और होंगें उनका ग्रहण करनेके लिये यहां सर्व शब्दका प्रयोग किया है. और आदर विशेषता दिखाने के लिये प्रत्येक के आगे नमः शब्दका प्रयोग किया हैं.
अरहंतणमोकारो एको वि हविज्ज जो मरणकाले ॥
सो जिणवयणे दिट्ठो संसारुच्छेदणसमत्थो || ७५.५ || एकोप्यनमस्कारो मृत्युकाले निषेवितः ॥
विध्वंसयति संसारं भास्वानिव नमश्चयम् ॥ ७८४ ॥
विजयोदया - अरनणमोकारो बतां नमस्कारः । वो मरणकाले भवेज्जएको वि। यो मरणकाले भवेदे कोऽपि । सो सः । जिवणे विशे जिनवयन टष्टः । संसारुच्छेवणसमस्थो संसारोच्छेदनसमर्थः ॥
आश्वरसः ६
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