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मूलारावना
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इस नमस्कार के नामनमस्कार स्थापनानमस्कार, द्रव्यनमस्कार और भावनमस्कार ऐसे चार भेद हैं. नामनमस्कार - जिस किसीका 'नमस्कार' ऐसा नाम रखना यह इस पदार्थका नाम हो इस हेतुसे जो जो पद प्रयोग किया जाता है उसको नामनमस्कार कहते हैं.
स्थापना नमस्कार - नमस्कार करनेमें तत्पर होकर हाथ जोडकर मस्तकपर जिसने स्थापन किये हैं ऐसे जीवी जैसी आकृति होती हैं वैसी आकारयुक्त जो मूर्ति स्थापी जाती है उसको स्थापनानमस्कार कहते हैं. द्रव्यनमस्कार — नमस्कारप्रभृत नामका ग्रंथ है. जिसमें नय प्रमाण और निक्षेप वगैरइके द्वारा नमस्कारका निरूपण किया है इस ग्रंथका जिसको ज्ञान है परंतु इसमें निरूपण किये गये अर्थ में सांप्रतकालमें जिसका योग नहीं है. अर्थात् में जिसका अन्य पदार्थके तरफ चित्त गया है वह पुरुष ' द्रव्यनमस्कार शब्द वाच्य है. वह पुरुष नमस्कारका यथार्थ स्वरूप प्रतिपादन करनेवाले श्रुतानका कारण होनेसे उसको आगम द्रव्यनमस्कार कहते हैं.
नो आगम द्रव्यनमस्कार के ज्ञायक शरीर, भाषि और तद्वयतिरिक्त, ऐसे भेद है. नमस्कार प्राभृतके ज्ञाताका जो त्रिकालमोचर शरीर उसमें भी नमस्कार शब्द का प्रयोग करते हैं. क्योंकि शरीरके बिना नमस्कार शास्त्रका ज्ञान जीवको होता नहीं. इस लिये शरीर भी ज्ञानका कारण है. उसमें भी नमस्कार पदका प्रयोग करते हैं. त्रिकालमोचर शरीर में जो भूतशरीर नामक भेद है उसके च्युत, व्याषित और व्यक्त ऐसे तीन भेद हैं. आयुष्य पूर्ण गलने पर जो शरीर आत्मासे छूट जाता है उसको च्युत शरीर कहते हैं. उपसर्ग होनेपर जो शरीर छूट जाता है वह व्यावित कहा जाता है. आयुष्यका अभाव हुआ है ऐसा समझकर आत्मा के द्वारा जो शरीर त्यागा जाता है उसको त्यक्त कहते हैं. इसके तीन भेद हैं, भक्तप्रत्याख्यान, प्रायोपगमन और इंगिनीमरण इन तीनो भेदों में से किसीका भी आश्रय कर योग्य विधीसे शरीरका त्याग होता है उसको त्यक्त कहते हैं.
भक्तप्रत्यास्थान -- मुनिदीक्षा लेनेके अनंतर दीक्षा कालसे कपाय सल्लेखना और शरीर सल्लेखना करके निर्यापकाचार्यका आश्रय करनेके कालपर्यंत बीच कालमें ज्ञान, दर्शन और चारित्रमें जो जो अतिचार हुए हैं उनकी आलोचना करके गुरुके दिये हुये प्रायश्चित्त का स्वीकार करना चाहिये. तदनंतर द्रव्य सल्लेखना और भावलेखनाका आश्रय करके तीन प्रकारके आहारोंका त्याग कर रत्नत्रयकी आराधना करना इसको भक्तप्रत्या
आश्वरसर
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