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मूलाराधना
आश्वास
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तस्य उद्धरण नाम स्वकृतापराधकथनं । मालोचनाशयोचरणमेव शुद्धिरुध्यते । शानदर्शनचारित्रतपसां नैर्मत्यहेतुत्वा. त्, जीवितार्थिनः हितबुद्धया गृहीता अहिता । शीतविषपान उपमानं तद्वतीयमालोचना, भक्तपानादिवानन संबनया था कीचा गुळं म्यघुया क्रियमाणान शुद्धिं संपादयति विषपानमिम जीषितं विक्रयणलब्धं पानं तुष्टता उपभानोपमेययोः माधारणो यस्तथान्युपमानमुपमेयं नयोश्च साधारण धर्ममाश्रित्य सर्वत्रापमानोपमेयता । चंद्रमुखी कन्या इत्यादी मंद उपमान. जगम मुख नता सर्व जामनगमता नसाधारणी धर्मः ।।
शांतनुखेन गुवनुकपनापुर्व कालोचनाया दुष्टतामाचष्टे -
मुन्टारा-केदूग क्रीत्वा । जीविक्षाधीभो जीविता: । अहिदे प्राणापहारित्वादपकारक । तधिमा तथा इयं । भक्ताापचार पूविका । सल्लुद्धरणसोधी शलास्य भायाख्यस्योद्धरणं स्वकृत्तापराधकथनं आलोचना । तदेव सोधी शुद्धा रत्नभये नगल्यहेतुत्वान् । धनेन क्रीस्था पीतं विषं जीवितमिव भक्तादिना गुरुमनुकंच कृतालोचना शुद्धिं न करोतीति दृष्टान्तार्थः । इयमालोचना विषबदुष्टेति तात्पर्यम् ।
अर्थ-जीने की इच्छा करनेवाला कोई पुरुष अहितकर विषको खरीद कर हितकर समझकर. पीता है. उमर ममान ही यह मायाशल्य उद्धार करनेवाली शुद्धि समझनी चाहिये. आलोचनाके दोष मनसे नष्ट करना है। शुद्र हैं. अथान् अपने किये हुए अपराध निष्कपट भावसे गुरुके समीप कहना ही शल्योद्धरण शुद्धि है। इस शुद्धिस ही ज्ञान, दर्शन और नारित्र निर्मल होते हैं.
परंतु यह आलोचना जीवितार्थी मनुष्यने हितकर समझकर किये हुये विषपानके समान है. विषपान उपमान है. और यह आलोचना उपभव है. आहारादि पदार्थ गुरुको देकर अथवा बंदना करके गुरुको मानो खरीद लिया है एसी मनमें कल्पना कर यह आलोचना की जाती है अतः यह दुष्ट है. इस उपमान और उपमेयमें साधारणधर्म दुष्टता है. उपमान और उपमेय और साधारण धर्मका आश्रय लेकर उपमान उपमेयता दिखाई जानी है. जैसे चंद्रमुखी कन्या इस उदाहरण में चंद्र उपमान, मुख उपमेय और गोलाई, सर्वजनचित्ताकर्षकता यह साधारणधर्म है. वैसे यहां भी विषपान उपमान, आलोचना उपमेय और दोनोंमें दुष्टता यह साधारणधर्म है. यद्यपि इस गाथामें मल्लुद्धरणसोधी इस समस्तपदमें सल्ल शब्द सामान्यवाचक है परंतु इस प्रकरणमें मायाशल्पक अर्थ में वह रूढ हुआ है.
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