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मूलाराधना
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रसयुक्त आहारके बिना यह मेरा परिश्रम दूर न होगा ऐसी चिंता करना पदकाय जीवोंको मन वचन और शरीर इन तीन योगों में से किसी एक योगसे बाधा देने के लिये प्रवृत्त होना. मेरेको बहोत निद्रा आती है. और यह अमोदर्य नामक तप मैंने व्यर्थ धारण किया है. यह संक्लेशदायक है. संताप उत्पन्न करनेवाला ऐसा वह तप फिर मैं कभी भी न करूंगा ऐसा संकल्प करना ये अवमोदर्य तपके अविचार हैं.
बहुत भोजन करनकी भनमें इन्छा रखना, दूसरोंको बहुत भोजन करनेमें ग्रहण करूंगा ऐसा विचार रखना, तुम वृति होनेतक भोजन करो ऐसा कहना यदि वह भोजन कियाऐगा Til तुमने अच्छा किया ऐसा बोलना. अपने गले को हाथसे स्पर्शकर यहां तक तुमने भोजन किया है ना ? ऐसा ह चिन्ह से अपना अभिप्राय प्रकट करना. ये सब अमोदर्य तपके अतिचार है.
अब वृत्तिपरिसंख्यान तपके अतिचार- मैं सात घरोंमें ही प्रवेश करूंगा, अथवा एक पाटक में प्रवेश करूंगा, किंवा दरिद्री के गृहमें ही आज प्रवेश करूंगा. इस प्रकारके दावासे अथवा इस प्रकार के स्त्रीसे यदि दान मिलेगा तो लेंगे ऐसा संकल्प कर सात घरसे अधिक घर में प्रवेश करना, दूसरोंको मैं भोजन कराऊंगा इस हेतू से मिन पाटक में प्रवेश करना, ये वृत्तिपरिसंख्या के अतिचार हैं.
रसपरित्याग तपके अतिचार रसका त्याग करके भी उसमें अत्यासक्ति उत्पन्न होना, दुसरोंको रसयुक्त आहारका भोजन कराना और रसयुक्त भोजन करनेकी सम्मति देना. ये इस रूप के अतिचार हैं.
कायक्लेशतके आतापनयोगका अतिचार- उष्ण से पीडित होनेपर थंड पदार्थोंके संयोगकी इच्छा रखना। यह संताप मेरा कैसा नष्ट होगा ऐसी चित्ता उत्पन्न होना, पूर्व में अनुभवन किये गए शीतल पदार्थोंके स्थानका स्मरण होना, कठोर धूपका द्वेष करना, शरीरको पिच्छीसे स्पर्श न करके ही धूपसे शरीरसंताप होनेपर छाया में प्रवेश करना, इत्यादिक अतिचार आतापनयोगके हैं.
वृक्षगृल योगके अतिचार - इस योगको धारण करनेपर भी अपने हापसे, पावसे और शरीरसे जलकायिक जीवोंको दुःख देना, अर्थात् शरीरपर लगे हुए जलकण हाथ पोछना अथवा पाव शिलावर अथवा फलकपर संचित हुआ जल अलग करना, गीली मट्टीकी जमीनवर सोना, जहां जलमवाह बहता है ऐसे स्थानमें अथवा खोल प्रदेश में बैठना, वृष्टिप्रतिबंध होनेपर कप वृष्टि होगी ऐसी मनमें चिंता करना ॠष्टि होन
आश्वासः
प्र
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