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मूलाधना
आश्वास
BARA
ARETTER
कछादि प्रतिगृण्हाति । अपाहिलेहाए उक्तायाः परीक्षाया अभावे बहुदोसा बहवोऽसमाधिकरा दोषाः स्युः । तथा हि-- निरस्ताहातृष्णो न वेति यदि न परीक्षितः तदा आहारे नृणायात दिवं तमेव चिंतयति इति कथमाराधकः स्यात् । क्षुल्पिपासापरीयावष्टंभासहनात्पन्कुर्वन् धर्मदूषणं च कुर्यात । आराधनामा व्याक्षेपो भविष्यति न ये परीक्ष्य यदि में। त्याज अनि । नागिन कार्यसिद्धिः । स्वयं च जियत जोन । गन्यादीनां शुभाशुभमीक्षा यंन कुना माशुभ वन्य स्थति नदा अभं राज्यादिकभुद्दिश्य तं गृहीत्या गनि गधा च तस्योपकारमः: स्यात् । अमरीक्षायां तु गम्यादि । अपकः न चरिः क्लिश्यते गणम्य चोपद्रवं यदि पश्या स्वम्य वा तहा न पारमने कार्य । तदपलिनकारी सू। तस्यारकारफो नापि स्वस्त । प्रतिलेखा । त्रतः। 20 | अंकतः २॥
अर्थ-राज्य, गांव, शहर वह स्थान, राजा, गण और स्वयं इन सबकी परीक्षा कर समाधिके लिये क्षपकका स्वीकार करते हैं. यदि राज्यादिक क्षपककी समाधिसाधनके लिये अनुकूल हो दो सम्यक्त्वादि गुणोंको सिद्ध करनेवाले आचार्य सम्पकत्वादि गुणों को सिद्ध करने के लिये उद्युक्त हुए. क्षपकका स्वीकार करते हैं. यदि इनकी परीक्षा विना करे ही आपकका स्वीकार करनेपर बहुदोष उत्पन्न होते है.
आचार्य प्रथम क्षपककी बद्ध आहारमें लंपट है या नहीं इस का परीक्षण करते हैं.
यदि वह आहारलंपट होगा तो रातदिन आहारकाही चिंतन करेगा फिर वह आराधक कैसा होगा ? क्षुधा परीषह , प्यासका दुःख सहन करनेमें असमर्थ होकर जोर जोरसे चिल्लाएगा' और धर्मको दृषण देगा.
क्षपकके आराधनामें विघ्न उत्पन्न हो गया न होगा इसका निर्णय यदि नहीं किया तो, क्षपका जिन्न । उपस्थित होनेपर त्याग करेगा जिससे उसकी कार्य सिद्धि होगी नहीं. और आचार्यकी भी निंदा होगी.
इस क्षपकके समाधिकार्यसे राज्यादिकका शुभ होगा या अशुभ होगा इसका भी परीक्षण आचार्य । करते हैं. राज्यादिकका अशुभ होगा ऐमा दीखनेपर उस राज्यादिकका त्याग कर अन्य राज्यादिकका आश्रय आचार्य लेते हैं. तब अन्य राज्यको भी वह समाधिकाय हितकर होता है. यदि शुभा. शुभकी परीक्षा नहीं की तो गज्यभ्रंश हो जानेपर अपकको संक्रश होगा. और आनायको भी संक्लेश होगा. यदि गण और स्वतः को इससे उपद्रव होगा एग। ऐसा मालुम हुआ तो इस कार्यका प्रारंभ नहीं करते हैं. परीक्षा न कर प्रवृत्ति करनेसे क्षपककी व खुद आचायकी भी हानि होगी.
PATI