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आत्मतत्व-विचार
उसके परिणाम स्वरूप विपय-सम्वन्धी आत्मा का जो चेतना व्यापार होता उसे उपयोग कहते है ।
इस प्रकार इन्द्रियों एक प्रकार के यन्त्र है और आत्मा उनके चलानेबाला कारीगर हैं । इसलिए इन्द्रियाँ ही आत्मा नहीं हैं, आत्मा इन्द्रियों मे भिन्न है ।
प्राण और आत्मा भिन्न हैं
कुछ लोग 'प्राण' को ही 'आत्मा' मानते है । लेकिन, 'प्राण' क्या वस्तु है, इसका वे सष्टीकरण नहीं कर पाते। कभी उसे एक प्रकार की वायु मानते हैं, तो कभी उसे सुक्ष्म प्रवाही पदार्थ मानते हैं, तो कभी उसे सूर्य की गर्मी मानते है । परन्तु ये सब भौतिक पदार्थ है, इसलिए आत्मा का स्ान नहीं ले सकते । जैन शास्त्रों में प्राणो की संख्या दस मानी हैं : पाँच इन्द्रियॉ, तीन प्रकार के वल यानी मनोबल, वचनबल और कायवल, घ्वामोच्छवास और आयुष्य । इन दसो प्राणो को धारण करने वाला, उनसे भिन्न, आत्मा है और इसी कारण वह प्राणिन् – प्राणोको धारण करनेवाला - कहलाता है ।
आत्मा मनसे भिन्न है
कुछ लोग 'मन' कोई ही 'आत्मा' मानते हैं, वह भी उचित नहीं है । मन के द्वारा विचार कर सकते हैं और इच्छाये व्यक्त कर सकते है । परन्तु, विचार करने वाला और लगन तथा इच्छा प्रदर्शित करने वाला उनसे अलग होता है और वही आत्मा हैं। आज के मनोविज्ञान ने मन का गहन अध्ययन करने के बाद प्रकट किया है कि, हम जिसके द्वारा विचार व्यक्त करते हैं वह बाह्य मन है । उसके अन्दर भी एक दूसरा मन रहता हैं, जिसे आतरमन ( सवकास माइड ) कहा जाता है । विचारों, लगनी ओर इच्छाओं का मूल श्रोत उसी में से बहता है ।