Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका. सू० ५ श्रुतज्ञानस्वरूपनिरूपणम् दीप्तिमान-परवादिभिरनुषणीयः । शिवः अकोन: यहा- त्र तत्र वा विहरन् लोका ल्याणकारी । सोमः-शान्तदृष्टिः। गुणशतकलित:-गुणाः दा दाक्षिज्यादयः तेषां शतानि, तैः कलित , इह शतशदो बहुत्ववाचकः । एतादृश एव मुनिः प्रवचनसारं- द्वादशाङ्गरूपप्रवचनार्थ परिकरितु रम्यक् प्ररूपयितु युक्तः योग्यः सम में भवती त्यर्थः उन.पञ्चविंशतिगुणयुन स्थ मुनेर्व वनं घृतपरिषिक्तवह्निरिव भाति । उक्तगुण हितसा वचनं तु स्नेहविहीनदीप इव न शोभते । एवं पविंशति गुणयुक्तेन मुनिना कस्य वाऽनुयोगः कसा शास्त्रसाऽनुयं गः वर्तव्य इत्यपि वक्ताम् । ताराणि- तस्य अनुयोगग्य द्वाराणि उपक्रमादीनि वक्तव्यानि । वक्ष्यते अग्रे स्वयमेव सूत्रकारः। त -अनुयोगस्य लक्षणं वक्तव्यम् । लक्षणं चैवमुक्तम्- .. हो २१, गंभीरः-जिसका ग्वभाव गहरा हो २२. दीप्तिमान् परवादियों द्वारा जो परास्त न किया जा सके २३, शिव-क्रोध जिसे न आवे, अथवा-इतस्ततः विहार करता हुआ जो लोक का कल्याणकारी हो २४, सोम-जिसकी दृष्टि शांत हो २६. और गुणशत कलित-सैकडों दयादाक्षिण्य आदि गुणों से जो युक हो, ऐसा मुनि द्वादशांगरूप प्रवचन के अर्थ को अच्छी तरह से प्ररूपित करने के लिये समर्थ होता है । इन २५, (पच्चीस) गुणों से युक्त मुनि के वचन घृत से सिंचित अग्नि के जैसे तेजस्वी होते हैं। परन्तु इन गुणों से रहित जो साधु होता है उसके वचन स्नेह से रहित दीपक की तरह शोभित नहीं होते हैं । इस प्रकार इन २५ गुणों से युक्त मुनि को "किस शास्त्र का अनुयोग कर्तव्य है यह भी कहना चाहिये । अनुयोग के जो उपक्रमः आदि द्वार कहे गये हैं-वे भी शिष्य को कहना चाहिये । अनुयोग के मेद" २२, "गंभीर" या स्थावे लार राय, २३, “दीप्तिमान् । सो सिमान साय-परमताही भने ५२ ४२वाने समय नउय, २४, ‘शिवा" જેમનામાં ફોધને અભાવ હોય અથવા અહીં તહીં વિહાર કરતા થકા જેઓ लानु क्या ४२११२॥ हाय, २५, 'साम'' रेमनी ष्टि भुसभुद्री शान्त होय, ''गुणशतकलितः' मने मी या क्षय माहिसे गुथी संपन्न હોય, એવા મુનિ જ ઢ દશાંગરૂપ પ્રવચનના અર્થને સારી રીતે પ્રરૂપિત કરવાને સમર્થ હોય છે, આ ૨૫ ગુણેથી યુકત મુનિનાં વચનો ઘી વડે સિંચિત અગ્નિના સમાન તેજસ્વી હોય છે પરંતુ આ ગુણેથી રહિત જે સાધુ હોય છે તેના વચને તેલથી રહિત દીપકના સમાન તેજ રહિત (પ્રભાવ રહિત) હોય છે.
આ પ્રકારના ર૫ ગુણોથી યુકત મુનિએ ક્યા શાસ્ત્રને અનુયોગ કરો જોઈએ, એ વાત પણ અહીં પ્રકટ કરવા અનુયાગના જે ઉપકમ આદિ દ્વાર
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