Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ 26 ] [प्रज्ञापनासूत्र अंबिलरसपरिणता वि महररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सोयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि 20 / [13-3] जो संस्थान की अपेक्षा से-न्यत्रसंस्थान-परिणत हैं, वे वर्णत:-कृष्णवर्णपरिणत हैं, नीलवर्णपरिणत भी, रक्तवर्णपरिणत भी, पीववर्णपरिणत भी और शुक्लवर्णपरिणत भी होते हैं। गन्धतः (वे) सुगन्धपरिणत भी होते हैं और दुर्गन्धपरिणत भी। रसत: (वे) तिक्तरसपरिणत भी होते हैं, कदरसपरिणत भो, कषायरसपरिणत भी, अम्लरसपरिणत भी होते हैं और मधररसपरिणत भी। स्पर्श की अपेक्षा से—(वे) कर्कशस्पर्शपरिणत भी होते है, मृदुस्पर्शपरिणत भी, गुरुस्पर्शपरिणत भी, लघुस्पर्शपरिणत भी, शीतस्पर्शपरिणत भी और उष्णस्पर्शपरिणत भी तथा स्निग्धस्पर्शपरिणत भी होते हैं और रूक्षस्पर्शपरिणत भी // 20 // [4] जे संठाणश्रो चउरंससंवाणपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधमो सुन्भिगंधपरिणता वि दुभिगंधपरिणता वि, रसतो तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्ध फासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि 20 / [13-4] जो संस्थान से चतुरस्रसंस्थानपरिणत हैं, वे वर्ग से कृष्णवर्णपरिणत भी होते हैं, नीलवर्णपरिणत भी, रक्तवर्णपरिणत भी, पीतवर्णपरिणत भी और शुक्लवर्णपरिणत भी होते हैं। गन्ध की अपेक्षा से—(वे) सुगन्धपरिणत भी होते हैं और दुर्गन्धपरिणत भी। रस की अपेक्षा से-(वे) तिक्तरसपरिणत भी होते हैं, कटुरसपरिणत भी, कषायरसपरिणत भी, अम्ल रसपरिणत भी होते हैं और मधुररसपरिणत भी। स्पर्श की अपेक्षा से-(वे) कर्कशस्पर्शपरिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्शपरिणत भी, गुरुस्पर्शपरिणत भी, लघुस्पर्शपरिणत भो, शीतस्पर्शपरिणत भी, उष्णस्पर्श-परिणत भी और स्निग्धस्पर्श-परिणत भी होते हैं, तथा रूक्षस्पर्शपरिणत भी // 20 // [5] जे संठाणतो प्रायतसंठाणपरिणता ते बण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुविकलवण्णपरिणता वि, गंधतो सुभिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसतो तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि 20110015 / से तं रूवियजीवपण्णवणा। से तं अजीवपण्णवणा। [13-5] जो संस्थान की अपेक्षा से प्रायतसंस्थानपरिणत होते हैं, वे वर्ण से--कृष्णवर्णपरिणत भी होते हैं, नीलवर्ण-परिणत भी, रक्तवर्ण-परिणत भी, पीतवर्ण-परिणत भी और शुक्लवर्णपरिणत भी होते हैं। गन्ध की अपेक्षा से-(वे) सुगन्ध-परिणत भी होते हैं और दुर्गन्ध-परिणत भी। रस की अपेक्षा से—(वे) तिक्तरसपरिणत भी होते हैं, कटुरस-परिणत भी, कषायरसपरिणत भी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org