Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] [25 भी होते हैं और उष्णस्पर्शपरिणत भी। संस्थान से-(वे) परिमण्डलसंस्थानपरिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थानपरिणत भी, व्यस्रसंस्थानपरिणत भी होते हैं और चतुरस्रसंस्थानपरिणत भी, तथा आयतसंस्थानपरिणत भी होते हैं / / 23 / 184 / 8 / / 13. [1] जे संठाणतो परिमंडलसंठाणपरिणता ते वाणतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता बि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधतो सुब्भिगंधपरिणता वि दुनिभगंधपरिणता वि, रसतो तित्तरसपरिणता वि कडयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सोयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि णिद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि 20 / [13-1] जो संस्थान की अपेक्षा से-परिमण्डलसंस्थानपरिणत होते हैं, वे वर्ण से-कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं नीलवर्ण-परिणत भी होते हैं, रक्तवर्ण-परिणत भी, पीत-वर्णपरिणत भी और शुक्लवर्ण-परिणत भी होते हैं / गन्ध की अपेक्षा से-(वे) सुगन्ध-परिणत भी होते हैं और दुर्गन्ध-परिणत भी। रस की अपेक्षा से---तिक्तरसपरिणत भी होते हैं, कटुरसपरिणत भी, कषायरसपरिणत भी, अम्लरसपरिणत भी और मधुररसपरिणत भी होते हैं। स्पर्श की अपेक्षा से--(वे) कर्कशस्पर्श-परिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्श-परिणत भी, गुरुस्पर्श-परिणत भी, लधुस्पर्श-परिणत भी, शीतस्पर्श-परिणत भी, उष्णस्पर्श-परिणत भी, स्निग्धस्पर्श-परिणत भी और रूक्षस्पर्श-परिणत भी होते हैं / 20 / / [2] जे संठाणो वट्टसंठाणपरिणता ते वण्णो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता बि सुविकलवण्णपरिणता वि, गंधतो सुभिगंधपरिणता वि दुन्भिगंधपरिणता वि, रसनो तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंधिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासप्रो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि गिद्धफास. परिणता वि लुक्खफासपरिणता वि 20 / [13-2] जो संस्थान की अपेक्षा से-वृत्तसंस्थानपरिणत होते हैं, वे वर्ण से-कृष्णवर्णपरिणत भी होते हैं, नीलवर्णपरिणत भी, रक्तवर्णपरिणत भी, पीतवर्णपरिणत भी, और शुक्लवर्णपरिणत भी। गन्ध की अपेक्षा से--(वे) सुगन्धपरिणत भी होते हैं और दुर्गन्धपरिणत भी। (वे) रस की अपेक्षा से-तिक्तरसपरिणत भी होते हैं, कटुरसपरिणत भी, कषायरसपरिणत भी, अम्लरस. परिणत भी और मधुररसपरिणत भी होते हैं। स्पर्श की अपेक्षा से (वे) कर्कश-स्पर्शपरिणत भी होते हैं, मृदु-स्पर्शपरिणत भी, गुरु-स्पर्शपरिणत भी होते हैं, लघुस्पर्श-परिणत भी, शीतस्पर्शपरिणत भी और उष्णस्पर्श-परिणत भी होते हैं, तथा स्निग्धस्पर्श-परिणत भी होते हैं और रूक्षस्पर्श-परिणत भी / / 20 // [3] जे संठाणतो तंससंठाणपरिणता ते वष्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिहवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणया वि, गंधप्रो सुभिगंधपरिणता वि दुन्मिगंधपरिणता वि, रसनो तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org