Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 24] [प्रशापनासूत्र तथा अम्लरस-परिणत भी होते हैं और मधुररस-परिणत भी / स्पर्श की अपेक्षा से—(वे) कर्कश. स्पर्श-परिणत भी होते हैं, मदुस्पर्श-परिणत भी, गुरुस्पर्शपरिणत भी और लघुस्पर्श-परिणत भी तथा स्निग्धस्पर्श-परिणत भी होते हैं और रूक्षस्पर्श-परिणत भी। तथा संस्थान की अपेक्षा से-(वे) परिमण्डलसंस्थान-परिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थान-परिणत भी, त्र्यस्रसंस्थान-परिणत भी, चतुरस्रसंस्थान-परिणत भी होते हैं और प्रायतसंस्थान-परिणत भी // 23 // [7] जे फासतो णिद्ध फासपरिणता ते वणतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधतो सुम्मिगंधपरिणता वि दुभिगंधपरिणता वि, रसतो तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि, संठाणतो परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरससंठाणपरिणता वि प्राययसंठाणपरिणता वि 23 / [12-7] जो स्पर्श से स्निग्धस्पर्श-परिणत हैं, वर्ण की अपेक्षा से वे-कृष्णवर्ण-परिणत भी, नीलवर्ण-परिणत भी, रक्तवर्णपरिणत भी, पीतवर्ण-परिणत भी और शुक्लवर्ण-परिणत भी होते हैं / गन्ध की अपेक्षा से-(वे) सुगन्ध-परिणत भी होते हैं और दुर्गन्ध-परिणत भी। रस की अपेक्षा से—(वे) तिक्तरस-परिणत भी होते हैं, कटुरस-परिणत भो, काषायरस-परिणत भी एवं अम्लरस-परिणत भी होते हैं और मधुररस-परिणत भी / स्पर्श की अपेक्षा से-वे कर्कशस्पर्श-परिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्श-परिणत भी, गुरुस्पर्श-परिणत भी, लघुस्पर्श-परिणत भी, शीतस्पर्श-परिणत भी और उष्णस्पर्श-परिणत भी होते हैं / संस्थान की अपेक्षा से-(बे) परिमण्डलसंस्थान-परिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थान-परिणत भी, व्यस्त्रसंस्थान-परिणत भी, चतुरस्रसंस्थान-परिणत भी और आयातसंस्थान-परिणत भी होते हैं // 23 / / [-] जे फासतो सुक्खफासपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नोलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधप्रो सुब्मिगंधपरिणता वि दुन्भिगंधपरिणता वि, रसमो तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहयफासपरिणता बि सोयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि, संठाणग्रो परिमंडलसंठाणपरिणता वि बट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणया वि चउरंससंठाणपरिणया वि पाययसंठाणपरिणता वि 23 / 184 / 8 / / 12-8] जो स्पर्श से रूक्षस्पर्शपरिणत होते हैं, वे वर्ण की अपेक्षा से-कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं, नीलवर्ण-परिणत भी, रक्तवर्ण-परिणत भी और पीतवर्ण-परिणत भी होते हैं तथा शुक्लवर्णपरिणत भी। गन्ध की अपेक्षा से--(वे) सुगन्धपरिणत भी होते हैं और दुर्गन्धपरिणत भी / रस की अपेक्षा से--वे तिक्तरस-परिणत भी होते हैं, कटुरस-परिणत भी, कषायरस-परिणत भी, अम्लरसपरिणत भी और मधुरस-परिणत भी होते हैं / स्पर्श की अपेक्षा से--(वे) कर्कशस्पर्श-परिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्श-परिणत भी, गुरुस्पर्श-परिणत भी और लघुस्पर्श-परिणत भी होते हैं तथा शीतस्पर्श-परिणत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org