Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 22] [ प्रज्ञापनासून [12-2] जो स्पर्श से मृदु (कोमल)-स्पर्श-परिणत होते हैं, वे वर्ण से-कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं, नीलवर्ण-परिणत भी, रक्तवर्ण-परिणत भी, पीतवर्ण-परिणत भी एवं शुक्लवर्ण-परिणत भी होते हैं। (वे) गन्ध से-सुगन्धपरिणत भी और दुर्गन्धपरिणत भी होते हैं / रस से-(वे) तिक्तरसपरिणत भी होते हैं, कटुरस-परिणत भी, काषायरस-परिणत भी, अम्ल रस-परिणत भी होते हैं और मधुररस-परिणत भी / स्पर्श से—(वे) गुरुस्पर्श-परिणत भी होते हैं, लघुस्पर्श-परिणत भी, शीतस्पर्शपरिणत भी, उष्णस्पर्श-परिणत भी, स्निग्धस्पर्श-परिणत भी और रूक्षस्पर्श-परिणत भी होते हैं / संस्थान से-परिमण्डलसंस्थान-परिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थान-परिणत भी, व्यस्रसंस्थान-परिणत भी और चतुरस्रसंस्थान-परिणत भी होते हैं, तथा आयतसंस्थान-परिणत भी // 23 // [3] जे फासतो गरुयफासपरिणता ते वण्णतो कालबण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिहवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधनो सुन्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसो तित्तरसपरिणता वि कडयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महररसपरिणता वि, फासग्रो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि सोयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि प्राययसंठाणपरिणया वि 23 / / [12.3] जो स्पर्श से गुरुस्पर्श-परिणत होते हैं, वे वर्ण से कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं, नीलवर्ण-परिणत भी, रक्तवर्ण-परिणत भी, पीतवर्ण-परिणत भी और शुक्लवर्ण-परिणत भी होते हैं / गन्ध से-सुगन्धपरिणत भी होते हैं और दुर्गन्धपरिणत भी। रस से (वे) तिक्तरस-परिणत भी होते हैं, कटुरस-परिणत भी, कषायरस-परिणत भी, अम्लरस-परिणत भी और मधुररस-परिणत भी होते हैं / स्पर्श से (वे) कर्कशस्पर्श-परिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्श-परिणत भो, शीतस्पर्श-परिणत भी, उष्णस्पर्श-परिणत भी. स्निग्धस्पर्श-परिणत भी होते हैं और रुक्षस्पर्श-परिणत भी / संस्थान को अपेक्षा से--(वे) परिमण्डलसंस्थान-परिणत भी होते हैं. वत्तसंस्थान-परिणत. यस्रसंस्थान-परिणत, तथा चतुरस्रसंस्थानपरिणत भी होते हैं और प्रायतसंस्थान-परिणत भी // 23 // [4] जे फासतो लहुयफासपरिणता ते वण्णो कालवण्णपरिणता वि गोलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधरो सुन्भिगंधपरिणता वि दुन्भिगंधपरिणता वि, रसो तित्तरसपरिणता वि कड़यरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणया वि सोयफासपरिणया वि उसिणफासपरिणया वि णिद्धफासपरिणया वि लुक्खफासपरिणया वि, संठाणतो परिमंडलसंठाणपरिणया वि वट्टसंठाणपरिणया वि तंससंठाणपरिणया वि चउरंससंठाणपरिणया वि प्राययसंठाणपरिणया वि 23 / [12-4] जो स्पर्श की अपेक्षा से---लघु (हलके) स्पर्श से परिणत होते हैं, वे वर्ण की अपेक्षा से--कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं; नीलवर्ण-परिणत भी, रक्तवर्ण-परिणत भी, पीतवर्ण-परिणत भी एवं शुक्लवर्ण-परिणत भी होते हैं। गन्ध की अपेक्षा से-(वे) सुगन्धपरिणत भी होते हैं और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org