Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रयम प्रज्ञापनापद] [21 लहुयफासपरिणता वि सोतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणग्रो परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि प्राययसंठाणपरिणता वि 20110013 / [11-5] जो रस से मधुररसपरिणत होते हैं, वे वर्ण से कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं, नीलवर्ण-परिणत भी, रक्तवर्ण-परिणत भी होते हैं, तथा पीतवर्ण-परिणत भी और शुक्लवर्ण-परिणत भी होते हैं / गन्ध से-(वे) सुगन्धपरिणत भी होते हैं और दुर्गन्धपरिणत भी / स्पर्श से-(बे) कर्कशस्पर्श-परिणत भी होते हैं; मृदुस्पर्श-परिणत भी, गुरुस्पर्श-परिणत भी, लघुस्पर्श-परिणत भी हैं, शीतस्पर्श-परिणत भी, उष्णस्पर्श-परिणत भी तथैव स्निग्धस्पर्श-परिणत भी और रूक्षस्पर्श-परिणत भी होते हैं। संस्थान से-(वे) परिमण्डलसंस्थान-परिणत होते हैं वृत्तसंस्थान-परिणत भी, व्यस्रसंस्थानपरिणत भी, चतुरस्रसंस्थानपरिणत भी और आयतसंस्थान-परिणत भी होते हैं / 20 / 100 / 3 / 12. [1] जे फासतो कक्खडफासपरिणता ते वणो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधयो सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसग्रो तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणम्रो परिमंडलसंठाणपरिणता वि बट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि प्राययसंठाणपरिणता वि 23 / [12-1] जो स्पर्श से कर्कशस्पर्शपरिणत होते हैं, वे वर्ण से कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं, नीलवर्ण-परिणत भी, रक्तवर्ण-परिणत भी, पीतवर्ण-परिणत भी, और शुक्लवर्ण-परिणत भी होते हैं / गन्ध से (वे) सुगन्धपरिणत भी होते हैं और दुर्गन्धपरिणत भी। रस से-(वे) तिक्तरस-परिणत भी होते हैं. कटरस-परिणत भी, काषायरसपरिणत भी, अम्लरस-परिणत भी और मघर रस-परिणत भी होते हैं। स्पर्श (वे) गुरुस्पर्श-परिणत भी होते हैं, लघुस्पर्श-परिणत भी, शीतस्पर्श-परिणत भी और उष्णस्पर्श-परिणत भी, एवं स्निग्धस्पर्श-परिणत भी तथा रूक्षस्पर्श-परिणत भी होते हैं / संस्थान से(a) परिमण्डलसंस्थान-परिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थान-परिणत भी, यस्रसंस्थान-परिणत भी और चतुरस्रसंस्थान-परिणत भी होते हैं, तथा अायतसंस्थान-परिणत भी होते हैं / / 23 / / [2] जे फासतो मउयफासपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणया वि, गंधओ सुभिगंधपरिणता वि दुन्भिगंधपरिणता वि, रसश्रो तित्तरसपरिणता वि कडयरसपरिणता वि कसायरप्तपरिणता वि अंबिलरस परिणता वि महुररसपरिणता वि, फासनो गरुयफासपरिणया वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणलो परिमंडलसंठाणपरिणया वि बट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरससंठाणपरिणता विप्राययसंठाणपरिणता वि२३ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org