Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] 19 संठाणपरिणया वि वट्टसंठाणपरिणया वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि प्रायतसंठाणपरिणया वि / 23 // 46 // 2 // [10-2] जो गन्ध से-दुर्गन्धपरिणत होते हैं, वे वर्ण से—कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं, नीलवर्ण-परिणत भी, पीतवर्ण-परिणत भी रक्तवर्ण-परिणत भी और शुक्लवर्ण-परिणत भी होते हैं / रस से(वे) तिक्तरस-परिणत भी होते हैं, कटुरस-परिणत भी, कषायरस-परिणत भी, अम्लरस-परिणत भी और मधुररस-परिणत भी होते हैं / स्पर्श से-(वे) कर्कशस्पर्श-परिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्श-परिणत भी होते हैं, गुरुस्पर्श-परिणत भी, लघुस्पर्श-परिणत, शीतस्पर्श-परिणत भी, उष्णस्पर्श-परिणत भी, स्निग्धस्पर्श-परिणत भी और रूक्षस्पर्श-परिणत भी होते हैं / संस्थान से—(वे) परिमण्डल-संस्थानपरिणत होते हैं, वृत्तसंस्थान-परिणत भी, व्यत्रसंस्थान-परिणत भी, चतुरस्रसंस्थान-परिणत और आयतसंस्थान-परिणत भी होते हैं / / 23-46 / 2 11. [1] जे रसनो तित्तरसपरिणया ते वण्णो कालवण्णपरिणता वि णोलवण्णपरिणता वि लोहियवरुणपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुश्किलवण्णपरिणता वि, गंधयो सुब्भिगंधपरिणता वि दुभिगंधपरिणता वि, फासो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणो परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणया वि तंससंठाणपरिणया वि चउरंससंठाणपरिणया वि प्राययसंठाणपरिणता वि 20 / [11-1] जो रस से तिक्तरस-परिणत होते हैं, वे वर्ण से-कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं, नीलवर्ण-परिणत भी होते हैं, रक्तवर्ण-परिणत भी, पीतवर्ण-परिणत भी और शुक्लवर्ण-परिणत भी होते हैं / गन्ध से (वे) सुगन्ध-परिणत भी और दुर्गन्ध-परिणत भी होते हैं। स्पर्श से-(वे) कर्कशस्पर्शपरिणत होते हैं, मृदुस्पर्श-परिणत भी, गुरुस्पर्श-परिणत भी, लघुस्पर्श-परिणत भी, शीतस्पर्श-परिणत भी, उष्णस्पर्श-परिणत भी, स्निग्धस्पर्श-परिणत भी होते हैं, और रूक्षस्पर्श-परिणत भी। संस्थान सेवे परिमण्डलसंस्थानपरिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थान-परिणत भी, व्यस्रसंस्थान-परिणत भी, चतुरस्रसंस्थान-परिणत भी और अायतसंस्थान-परिणत भी होते हैं / / 20 / / [2] जे रसग्रो कडुयरसपरिणता ते वण्णो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधप्रो सुबिभगंधपरिणता विभिगंधपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि णिद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि प्रायतसंठाणपरिणता वि 20 / [11-2] जो रस से-कटुरस-परिणत होते हैं, वे वर्ष से कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं नीलवर्ण-परिणत भी, रक्तवर्ण-परिणत भी, पीतवर्ण-परिणत भी होते हैं और शुक्लवर्ण-परिणत भी। गन्ध से—(वे) सुगन्धपरिणत होते हैं और दुर्गन्धपरिणत भी। स्पर्श से-कर्कशस्पर्श-परिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्श-परिणत भी, गुरुस्पर्श-परिणत भी लघुस्पर्श-परिणत भी, शीतस्पर्श-परिणत भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org