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हूया जे मृग दारुण जझ्यहुं तझ्याएण ते साहिय तझ्यहुं। सिगि पक्खि दाढि वि परिहरिया सोम्म सुलक्खण णियडइ धरिया। चोत्थाएण पुणु णउ उप्पेक्छिउ लोउ मृगहिं खज्जतउ रविवउ । ताडिय ते तढदंडपहारिहिं पंचमेण बहुबुद्धिपयारिहिं। वियलियफल तर विरइयमेरह अज्जव सुणिरोहिय णियकेरइ। पविरलदुमकालइ कुन्झंता फललोहें कोहें जुज्झंता। छट्ठारण मणुणा अणुयंधे वारिय पर कयसीमाचिं)। पत्ता-कुलयरपवरेण वि सतमेण णियमइविहवें भाविउ ।। पल्लाणिवि हयगयवरवसहभारारोहणु दाविउ ॥ ११ ॥
अठमेण चंगउ उवारसिउ डिंभयदंसणभउ णिण्णासिउ। णवमाएण सुयमुहससि दरिसिउ तं जोइवि जणु हियवइ हरिसिउ ।
और अब जो भयंकर पशु उत्पन्न हुए, तो तीसरे ने उनके पशुस्वरूप का वर्णन किया। सींगों, नखों और घत्ता-सातवें श्रेष्ठ कुलकर ने भी अपनी बुद्धि के वैभव से विचार किया तथा जीन कसकर अश्व, गज दाढ़ोंवाले पशुओं को छोड़ दिया और जो सौम्य और सुलक्षण थे, उन्हें अपने पास रख लिया। चौथे कुलकर एवं श्रेष्ठ बैलों पर भार लादना सिखाया ॥११॥ ने भी उपेक्षा नहीं की तथा पशुओं के द्वारा खाये जाते हुए लोक की रक्षा की। पाँचवें ने दृढ़ दण्डों के प्रहारों
और अनेक बुद्धिप्रकारों से उन्हें प्रताड़ित किया। छठे कुलकर सीमन्धर ने विगलित फलवाले वृक्षों को आठवें ने सुन्दर उपदेश दिया और बच्चे के देखने के डर को दूर कर दिया (उसके पूर्व पिता पुत्र का मर्यादायुक्त अपनी आज्ञा से सीधे सुनिबद्ध किया। वृक्षों के उस अभावकाल में नष्ट होते हुए, तथा फलों के मुख और आँखें देखे बिना मर जाते थे)। नौवें कुलकर यशस्वी ने पुत्र के मुखरूपी चन्द्रमा को देखना बताया। लोभ और क्रोध से झगड़ते हुए लोगों को आग्रह के साथ मना किया।
उसे देखकर लोग अपने मन में प्रसन्न हुए।
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