________________
णामुविका यातहोपनशाळकालेंगठजनेसरताजालें अजवलोयहोयामिपहाण हुनम रूपठणामबङजाणले साममवारहसयमहिहिलापंचपदहवाइयवहिजागरसोणवशानजाद पिणु विसुरहरियखोंदिलणपिणासह पंचसमरणाचेही देहपमाणूजासुधांदेडहखडा समयलयालजाणाहनमयणामेणयमे इकडमारककरणाहंसउपयवसमात्र सवायजपा युबकोडिजीवियसंपपनसडिसनाबाउमतिङ्गाणसवालुगा दिन संतजनालकेचणवपन दीवाहम ख लविठिसा गुरू हरियवस्वरमहल दाविमकपतरुवरामसहलालसणखणकिरणहयतममख सयपसयानडामणहमला मसिहकदारावलिणिशासखस्सेवाजोगधरा धरू श्वयस्थियजंगममंदल पणदणिवधि उदेतपुरंदहाधला अामपञ्चायतरह वाङहास्थितअणहरू जिमलायदोणादिवनाहिक पार्सशुलुकलयरपवकागदनालिजतजणेणणजाणिय पदिलणारविससिवरकाणिम अण विरुवाकयदि विंड्यावंडादिनपरिहवागणलोयझेलवारिहदारणावरहि १४
उसके बाद समय बीतने पर कल्पवृक्षों की परम्परा नष्ट होने पर, आर्यलोक का प्रधान मरुदेव नाम का बहुज्ञानी जो ऐसा लगता था मानो सुरवरों के सेवायोग्य धरा को धारण करनेवाला मन्दराचल ही अवतरित हुआ हो, राजा हुआ, जो पचहत्तर सहित पाँच सौ अर्थात् पाँच सौ पचहत्तर धनुषप्रमाण शरीरवाला था, वह नौ अंगप्रमाण या मानो आकाश से इन्द्रदेव गिर पड़ा हो। जीवित रहकर देवशरीर प्राप्त कर स्वर्गलोक चला गया, फिर जिसकी आयु एक पूर्वप्रमाण, जो प्रजा का पालन घत्ता-इन तेरह कुलकरों के बाद, अपने बाहुओं से भुवनभार को उठानेवाले नरों से संस्तुत महान् करना जानता था, ऐसा प्रसेनजित् नाम का मनु हुआ। उसका शरीर सवा पाँच सौ धनुषप्रमाण ऊँचा था। कुलकर नाभि राजा हुए, जो मानो जीवलोक के लिए धुरी के समान थे॥१०॥ पूर्वकोटि आयु से परिपूर्ण जो शुद्ध बुद्धि और सद्भाव से आपूरित था। तपे हुए सोने के रंग के समान जो मानो त्रिभुवनरूपी भवन का आधार-स्तम्भ था। अपने भारी वंश का उद्धार करनेवाला, श्रेष्ठ मेखला से युक्त, आकाशतल में जाते हुए जो आदमी के द्वारा नहीं जाने जाते थे, पहले कुलकर ने उन्हें सूर्य और चन्द्रमा कल्पवृक्ष के अमृतफलों को दिखानेवाला, आभूषण रत्नों की किरणों से तममल को नष्ट करनेवाला, अपने कहा। और भी जो ज्योतिरंग कल्पवृक्षों के नष्ट हो जाने पर बिन्दुओं-बिन्दुओं पर स्थित दिखाई देने लगे। शरीर के तेज से आकाशतल को आलोकित करनेवाला, मुकुटरूपी शिखर से और हारावलि के निर्झर से युक्त दूसरे कुलकर ने (सन्मति ने) भी लोक के लिए उत्पातस्वरूप दिन-रात और नक्षत्रों का कथन किया।
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jaineligry.org