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* परितमंत जागा पिपबुछुट्टि १
यवल विदन सरी रिस रद्ध धम्मणाणगंज। रिमधीरहिं। बहते दिहोइन उपिणि उदहंत पत्रि वसपिणि सायरा दासिया गिद्या हि चडिकोडा कोडियमाण हि ताहि मिकाल हिंतिस्मिति दायूँ दहवि हविड विपसाहिय खेत। दरिसियमाणव देहा रोयई। इछा समिहमाणित सोय ।। कञ्चन धणु हसदाससरी रंद्र वोररकामलमेत्रा दारं तिभिदुश्च पत्रवियजी वई राणाह रण विह्नसियगी नई उत्रिमम झिमाइनिक्कि हलोयमिचिं पश्ह ।। छत्रा । एउ श्रसविमिन्नुतहिं माम इंदेंसईद सई । लायमवन्नविशमसखि अणवयजोद्वगु वल्ड्सशान वड वोलीणयतश्यपकालय थि यपलोवर्स मडलायालय अहारहधणु यूय तणुथिरजसु पलिग्नमदमंसविराजस पडिइ गामेंजायठ कुलमरु णुतेरहसयचा न पई ह अमभुमियाठ राजमंथर गई अवरु विहवन गामें सम्म अणुर्णमाणुसनेस अगर अहसमाइस सणगर अडड पमाणियाउ खेम करू संलयनसुन्नूयखेमं करु सत्रसयाइपंचसवरिण उनि अणुविन पालमय् खेमंधरुणामणदिग्रम उडियहजा वेष्पिण सोमु सय सत्रनपष्णा सहिंता
हानि और वृद्धि को करता हुआ लोक में घूम रहा है। जब बाहुबल, वैभव, मनुष्य, शरीर, धर्म, ज्ञान, गाम्भीर्य और धैर्य बढ़ते हैं, तो उत्सर्पिणी काल होता है, और जब ये चीजें घटती हैं तब अवसर्पिणी काल होता है। देवताओं को चकित करनेवाले इन कालों का समय, क्रमशः तीन, चार और दो कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण होता है, तीनों काल तीन प्रकार से विभक्त हैं। इनमें दस प्रकार के कल्पवृक्षों से प्रसाधित क्षेत्र हैं। मनुष्य के शरीर नीरोग दिखाई देते हैं। इच्छा के अनुसार भोगों को प्राप्त करते हैं। मनुष्यों के शरीर क्रमश: छह, चार और दो हजार धनुषप्रमाण होते हैं। उनका आहार क्रमशः बेर, बहेड़ा और आँवले की मात्रा के बराबर होता है। उनकी आयु क्रमशः तीन, दो और एक पल्य की होती है। शरीर रत्नों और अलंकारों से विभूषित होते हैं। इस प्रकार भोगभूमि के चिह्न प्रकट हुए-उत्तम, मध्यम और जघन्य
घत्ता- जहाँ कोई शत्रु नहीं होता, सभी मित्र हैं। सिंह हाथी के साथ रहता है तथा लोगों का लावण्य रंग और विलास से परिपूर्ण वय और यौवन नष्ट नहीं होते ॥ ८ ॥
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तीसरा काल बीतने पर जब पल्योपम के आठवें भाग बराबर समय रह गया, तब प्रतिश्रुति नाम का दीर्घायुवाला कुलकर उत्पन्न हुआ, स्थिर यशवाला जो अठारह सौ धनुषप्रमाण शरीर का था उसकी आयु पल्योषम के दसवें भाग के बराबर थी। फिर तेरह सौ धनुषप्रमाण शरीरवाला अमितायु और मन्थर गतिवाला सन्मति नाम का कुलकर उत्पन्न हुआ। फिर कामदेव के समान तथा आठ सौ धनुषप्रमाण शरीरबाला अडड बराबर आयु से युक्त प्राणियों का कल्याण करनेवाला क्षेमंकर कुलकर उत्पन्न हुआ। फिर सात सौ पचहत्तर धनुष प्रमाण शरीरवाला एक और मनु हुआ, उसका नाम क्षेमन्धर था और वह दिग्गज था, जो एक तुट्य वर्षप्रमाण जीवित रहकर मर गया। फिर जिसका शरीर सात सौ पचास
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