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सुत्र विदिंडगेर्दिदस रिसआयई ददरणिय इंसयसंकपचाय स नहेर्दिनाडिज्जा महि श्रावमदासु विता वहि । धत्ता | सो सदयुविदहरु दस सहस होइसमा सिउमनिषु तेव्ह विद्दहिंजगुणगुणि तोपखाणादिनिम्मिनचंगर चटरामा लम्कदि पञ्चगर जाणिजइस्कियमिता लरकस याजिकाडिपट बगेपनि हम्म ज तोऽअवरुविश्रद्गमा दरिसहंसारिको डिन लकडं उपसेवता उसदसंखई परमाग मिनंदेवेंदइन सुनेपमाणुयडतं लड़ प नवडक इविपडमरकर नलिएकम लुञ्चदियउ विसरांवर अडअममुहाहाहा इतिद जाहिंनिणवरणजाणिउंजिह मठ लयलय चिमहाल संगठ प्रणुदिमहालयणा मयसंग सासपपिन पहेलित अचलपु दिवारेंउम्मिलिङ पाषाणामथमाहिंसिजन पत्रिका हो इसके | छत्रा| परमाणुहर जश्मेलवर्हि तोतरेण समुझवर ग्रहहिंतसरेणुर्दिपिडियाद जो हर्दिरद रेणुयहिंसमग्नहि विकरमठ चहर्दिचिङरनहिं विकरणिय पुचहिंन्दिखार्ह सिमसिह १२
और दो युगों से दस बर्ष बनते हैं । उनमें दस का गुणा करने पर सौ साल होते हैं। जब १०० में दस का गुणा पूर्व नियुत कुमुद, पद्म, नलिन, संखसहित तुट्य, अट्ट, अमंग, ऊहांग और ऊहा को उसी प्रकार जानो कि किया जाता है तो एक हजार वर्ष होते हैं। जिस प्रकार जिन भगवान् ने कहा है। और भी मृदुलता, लता, महालतांग और फिर महालता नाम का प्रसंग आता है। शिरः प्रकम्पित, हस्तप्रहेलिका और अचल काल हैं, उसे महावीर प्रभु ने प्रकाशित किया है। इस प्रकार नाना नाम और प्रमाणों से विभाजित इतना संख्यात काल होता है।
धत्ता - दस से आहत होने पर वह हजार दस हजार होता है, थोड़े में मैंने ऐसा गुना है। उन दस हजार का भी जब दस से गुणा किया जाये तो एक लाख उत्पन्न होते हैं ॥ ५ ॥
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संख्याज्ञानियों (गणितज्ञों) ने यह अच्छी तरह जाना है कि चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वांग होता है। कथन मात्र से यह जान लिया जाता है कि सौ लाख का एक करोड़ कहा जाता है। जब पूर्वांग से पूर्वांग का गुणा किया जाये तो और भी संख्या जानी जाती है, सत्तर करोड़ एक लाख छप्पन हजार वर्षों का एक सह संख्य होता है। परमागम में देव (जिनेन्द्र) ने जैसा निबद्ध किया है उस पूर्व के प्रमाण को यहाँ जान लिया।
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घत्ता - यदि आठ परमाणुओं को मिला दिया जाये, तो एक त्रसरेणु उत्पन्न होता है और आठ त्रसरेणुओं के मिलने पर एक रथरेणु की उत्पत्ति होती है ॥ ६ ॥
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आठ रथरेणुओं के मिलने पर एक बालाग्र बनता है, आठ बालानों की एक लीख कही जाती हैं। आठ लीखों से एक सफेद सरसों बनता है, ऐसा महामुनियों ने कहा है।
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