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महिया महमहिया सुरहिय विससरियाकसमसर अपवारजयबाह हरिसरह बहातलदय दानलमारविलयाजश्वलमा जियतरणि जयकरुणिजउदमिरामपसमिरघातिमिर हाम दिरा जययुमुह जयसमहजमसुमण गटाणालखुम्सुम या पहामणजस्खलिपचमरिस्दजयललिय सुरकुर रुदजयगदिमयस्युणि जयचरमपरममुणि जया विसयविसिगरूलजयधवलासचवला
ਸਵਾਦਲੀ ਸਟੋਰ सिनजसबद गयगम्हजायचमहाधिनसिं
रितिश्रेणिकाजा दासणचालकरिय मन्त्रारिणिपुचठगश्हे जया याया निवदायादिवश महसुपंचमहाशादियजिम
पालिसरदाण्यारहमएकोहनिविहन संसवंसक्शावा सलंगन सूवश्वविलारणविदंग पुलमदिवसंजममा
या
घत्ता-सिंहासन और छत्रों से अलंकृत तथा मदरूपी मृगों के लिए सिंह के समान आपकी जय हो। चार गतियों से उद्धार कर आप मुझे पाँचवीं गति (मोक्ष) में ले जायें ॥३॥
मुनियों से पूज्य महामहनीय, दुग्धरस और विष के रस में समानभाव रखनेवाले, कामदेव की पहुँच से परे हे देव! आपकी जय हो। पापरूपी सिंह के लिए अष्टापद के समान, पण्डितों में प्रवर, सुख के निवास, रति का विलय करनेवाले, युति के मण्डल, सूर्य को जीतनेवाले हे करुण, आपकी जय हो। जड़ों का दमन करनेवाले, मन को भ्रमित करनेवाले, सघन अन्धकार के लिए सूर्य, हे सुमुख और समदृष्टि रखनेवाले आपकी जय हो। हे सुमन ! आपकी जय, जिनके लिए आकाश से सुमनों की वर्षा की जाती है ऐसे हे आकाशगामी, आपकी जय हो। जिन पर चमर ढोरे जाते हैं, ऐसे आपकी जय। हे सुन्दर कल्पवृक्ष, आपकी जय । हे गम्भीर मधुर ध्वनि, आपकी जय। हे अन्तिम तीर्थकर आपकी जय । हे विषयरूपी सर्प के लिए गरुड़, विश्व के लिए मंगलस्वरूप यश से धवल आपकी जय हो। जिनके यश के नगाड़े बज रहे हैं ऐसे हे अनिन्द्य अर्हन्त आपकी जय हो।
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राष्ट्र का पालन करनेवाला राजा श्रेणिक, इस प्रकार जिनेन्द्र भगवान् की वन्दना कर ग्यारहवें कोठे में जाकर बैठ गया। उत्पन्न होते हुए विश्वभार के भय से डरकर वह भक्ति के भार से विनत शरीर हो गया। राजा ने पूछा- 'संयम को धारण करनेवाले
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