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कविउनियाकदिंग्रहहिंसरिसवदिपरिमाणिन जवपमाणुदेवागमिजापेठा परमप्ययदिइसको इसमजवंशसुसूरिसमास शुलपालविदछिडवाइंदोदिताहिंकिरयाणविहचाख [णिचुड़माणसाबहिदंडार्दिछहसहासदियाबाद जायसपिसाहिगुणिजशपंचदिलायादा।। घुणुदरिसिजशणममहाजायणवकाणिउंज जामाणकरणअहिणाल्डि तस्मथमाणेखमा
खाणी परिवलियसपरिवारतिगुणा कता • खिहंधविखामसुङमई मायूनिसिसव विराम होउपडवालिकमगणानिस ह रसएराजेश्वणटि अयोमय सिसकिन तस्यापलिव धुमधाना॥ लेदिअसखिदिमहारुखन दायसमुहपमाण यरूबीतपित्रसगुणिग्रहाल दवतिय श्राठयमाणामाल दासमुध्वमुअनाडिहि। पन्नावमुदहकोडाकोडिदिाहनातन्तिमदिजसाघरसमादजडुकालचकमब्लडियनया पवित्रदाविपुपुरणमिाकेवलणाणधारसमलागासुससुसमुश्रामकृविसुसमट सुसमडस मुखुण्डायुसमट डसमुडामविदला मलकालवारपसाना नहामियदावियतन
आठ सरसों को इकट्ठा करने पर एक जौ का आकार बनता है ऐसा जिनागम में कहा गया है। परमपद में पल्यों से एक उद्धारपल्य बनता है, और असंख्यात उद्धारपल्यों से एक द्वीप-समुद्रप्रमाण काल बनता है। उसमें स्थित लोगों के द्वारा जो देखा जाता है उसमें कौन दोष लगा सकता है? मुनि लोग संक्षेप में आठ जौ का भी असंख्यात का गुणा करने पर एक अद्धा पल्य बनता है जो जन्म, स्थिति, आयु और प्रमाण का धारक एक अंगुल बताते हैं। छह अंगुलों का एक पाद होता है, दो पाद की एक वितस्ति, दो वितस्तियों का एक होता है। दस करोड़ पल्यों के बराबर घटिकाओं के समाप्त होने पर एक सागरप्रमाण समय होता है। रत्नी, चार रलियों का एक दण्ड मन में भाता है। हजार दण्डों का एक योजन होता है, उस योजन को आठ घत्ता-इतने ही सागरों के बराबर कालचक्र को मैंने लक्षित किया है, लो मैं वैसा ही बताता हूँ कि हजार से गुणित किया जाये और फिर उसे भी पाँच सौ से गुणा किया जाये, और फिर लोक को दिखाया जैसा केवलज्ञानी ने कहा है ॥७॥ जाये-इस प्रकार महायोजन कहा जाता है और जिसे जग को मापने का आधार समझा जाता है उसके प्रमाण से धरती खोदी जाये, अपनी परिधि से तीन गुनी अधिक गोल-गोल। और जो कैंची से न काटे जा सके ऐसे सूक्ष्म मेष के बच्चों के रोमों से उसे भरा जाये। जब वह भर जाये तो उसे गिनो मत । सौ साल में एक बाल सुषमा-सुषमा एक और सुषमा, सुषमा-दुषमा फिर दुषमा-सुषमा, दुषमा, अति दुषमा भगवान् महावीर निकालो, जब वह रोमराजि समाप्त हो जाये तब निश्चय से एक व्यवहार पल्य पूरा होता है। उन असंख्य के द्वारा विज्ञप्त ये छह काल विभाजित हैं। यह कालचक्र क्रमश: ऋद्धि को घटाता-बढ़ाता
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