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हिंगोत्तमसा मिलडारा पावना या इस्पनं अममदानुरागुवामं णिखणे विश्रामा सापहरू वायारत्रे पत्त्रेण जलहरु सुणिमणियमय मोदविहागदे। अरहंतावली देवोली दे पा लाविषिदेनिस्त्र पहउवीर जिणिदें बुन्नन पढमुसमास मिका लचणाइन जो डणि यादेंजोइन जगपरिणाम हो सोसयारिउ र सुगंधु माखिमुपको दिसम्मन विज कण शिक्षम कालपक्षत्रण लरकष्णु ॥ घथा ॥ लोणिपमप का समरनिव तन का विह रहमि वधदार का लुपरमेहिमुदे जिहा अंतर यरु समनु शणित आचलितसिंसिं किन ऊसासुविधावलिदिंड्यंखादं सत्ता सामदिश्रावन लखदि सर्दियो धार्दिलनरपि य इदपिकारिणितामणिमन हो तिमर हामणिचित्रा वडियदे सजे चहती मल व्यडियले घडियदिदो हिमनद अवसरू ता सहितदि जाइनिसियासरु तत्रिमहिंजिदिवस हिंवर मासुमदारिसिमा हहिं गिनाई विदिमासादिरि नमानिदञ्च नडुदितादिषुपुत्रमपसिद्ध विदिश्रमपर्दिसंदळ पंचविरहि
आदरणीय गौतम, बताइए कि पाप का नाशक तथा चार पुरुषार्थों से परिपूर्ण महापुराण किस प्रकार अवतरित हुआ?' यह सुनकर गौतम गणधर ने इस प्रकार घोषणा की कि जैसे पावस ऋतु आने पर मेघ गरज उठे हों। उन्होंने कहा- 'हे श्रेणिक, सुनो। मद और मोह से रहित अरहन्तों की समाप्त हो रही परम्परा का न आदि है और न होनेवाली परम्परा का अन्त है। वीर भगवान ने निश्चय रूप से यह कहा है-सबसे पहले संक्षेप में बताता हूँ कि काल अनादि और अनन्त है जिसे जिनभगवान् ने अपने केवलज्ञान से देखा हैं। इस विश्व के परिणमन में वही सहायक है, वह अरस, अगन्ध, अरूप एवं भारहीन है। संसार के प्रवर्तन के कारणस्वरूप इस निश्चयकाल को सम्यक्त्व से विलक्षण कोई विरला मनुष्य ही जान सकता है।
छत्ता - मुनियों के चरणकमलों के भ्रमर हे राजन्! मैं किसी भी तत्त्व को छिपा नहीं रखूँगा। परमेष्ठी भगवान् के मुख से जिस रूप में व्यवहार काल को मैंने सुना है वह मैं वैसा ही तुम्हें बताता हूँ ॥ ४ ॥
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एक अणु जितने समय में आकाश के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में जाता है उसे समय कहते हैं। असंख्य समयों की एक आवली कही जाती है। संख्यात आवलियों से एक उच्छ्वास बनता है। सात उच्छवासों का एक स्तोक समझना चाहिए। सात स्तोकों का एक लव कहा जाता है-ऐसा प्रियकारिणी त्रिशला के पुत्र महावीर ने समझा है। महामुनियों के चित्त में आनेवाली नाड़ी में साढ़े अड़तालीस लव होते हैं। दो घड़ियों से मुहूर्त का अवसर बनता है और तीस मुहूतों का दिन-रात होता है। दिनों से मास बनता है-ऐसा महाऋषिनाथ के द्वारा कहा गया है। दो माहों से ऋतुमान बनता है, तीन ऋतुमानों से फिर अयन प्रसिद्ध होता है। दो अयनों से एक वर्ष बनता है और पाँच वर्षों का युग कहा जाता है।
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