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विसरणुविचिपनं णिभिउंस इंसे हम्म पहाणें टियम एकजोयणपरिणामों माणखंसमणितोरणदा महिं कप्पिन कप्पपाय वारामहिं जलवा इस धूली पायारहिंतिय सस्य सणवम दियारहिं बलि वपरितमियमरालहिं वेदरणाणारा इमालहिं सुरपुर विस दरथो शवमालहिं खयरुचाइय युक्कुसुममालदि गंली रहिसणय ला फेरदिंव अंतहिंवड मंगल चरहिं सरिगमपधणी सरसंघ यदि नणारयगेयनिनायदि नबसिरसा। पण चानहिंकरण तथा लावणिरावाद। वेदप्रतहिंराठ पडन परमेसरूसवर्डमुडं सिंहास सिदरासी पुजिए निम्मलुजया जण पत्रिहरु पारनथुणडारा शिवेण सुवर्णसोरुदिवसजसा । जबस यल सुवणसल मलहरण इसिसरण वस्वरण। समधरण सवतरण जरमरण परिदरण अद वरुण वसवण जमपव वपुक्ष्मण सिरिरमा दिवसयर फणिखसर ससिजलया सिरणमा मउडयल मणिसलिल धुविमल कम कमल जयणिदिल विहिकसल पायमुसल यपवलाए सुयमवल दिन कबिल सिवाय कमणयावददल मथम हा स्वर दिय इहरहिय मणि
जिसे सौधर्म्य स्वर्ग के इन्द्र ने स्वयं निर्मित किया था और जो एक योजनप्रमाण क्षेत्र में स्थित था। जो मानस्तम्भों और मणियों के बन्दनवारों, कल्पित कल्पवृक्षों के उद्यानों, जलपरिखाओं और धूलिप्राकारों, चैत्यगृहों, नाना नाट्यशालाओं, सुरों, नटों और विषधरों के स्तोत्रों, कोलाहलों, विद्याधरों के द्वारा उठायी गयी पुष्पमालाओं, भुवनतल आपूरित करनेवाले बजते हुए मंगलवाद्यों, सा रे ग म प ध नी स आदि स्वरों के संघातों, तुम्बुरु और नारद के गीत-विनोदों, उर्वशी और रम्भा के नृत्यभावों तथा बजती हुई वीणाओं के स्वरों से शोभित था। ऐसे समवसरण में राजा ने प्रवेश किया और सामने परमेश्वर को देखा।
घत्ता - सिंहासन के शिखर पर आसीन, पवित्र, लोगों की जन्मपीड़ा का हरण करनेवाले, विश्वरूपी कमल के लिए सूर्य के समान वीर जिनेन्द्र की राजा ने स्तुति प्रारम्भ की ॥ २ ॥
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समस्त भुवनतल का मल दूर करनेवाले ! आपकी जय हो। ऋषियों के शरणस्वरूप श्रेष्ठ चरण तथा समता धारण करनेवाले, भव से तारनेवाले, बुढ़ापा और मृत्यु का हरण करनेवाले, यम, पवन और दनु का दमन करनेवाले, लक्ष्मी से रमण करनेवाले, मुकुटतल के मणियों के जल से जिनके पवित्र चरणकमल धोये गये हैं ऐसे हे समस्त विधान में कुशल, आपकी जय हो (मुनिधर्म और गृहस्थ धर्म की रचना में) । न्यायरूपी मूसल से प्रबलों को आहत करनेवाले, शास्त्रों से सबल, द्विज, कपिल, शिव और सुगत के कुनयों के पथ को नष्ट करनेवाले, मद का नाश करनेवाले, स्व-पर भाव से शून्य तथा दुःख से रहित,
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