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A place where the scattering of dust particles is like a symphony, a place where the sounds of the universe are in harmony, a place where the human soul finds its true purpose. This is the place where the king found himself, surrounded by the echoes of the divine.
The place was adorned with celestial beings, their voices echoing through the air, their movements a dance of grace and beauty. The air was filled with the scent of flowers, the sound of music, and the laughter of the gods.
The king, overwhelmed by the beauty of this place, looked up and saw the divine being, seated on a throne of gold, radiating light and peace. The king, filled with awe and reverence, began to praise the divine being, his words echoing through the halls of heaven.
The divine being, the one who removes the suffering of the world, the one who is the embodiment of compassion and love, the one who is the source of all that is good and beautiful, listened to the king's praise with a smile.
The king, filled with gratitude and joy, continued to praise the divine being, his words a testament to the power and glory of the divine.
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विसरणुविचिपनं णिभिउंस इंसे हम्म पहाणें टियम एकजोयणपरिणामों माणखंसमणितोरणदा महिं कप्पिन कप्पपाय वारामहिं जलवा इस धूली पायारहिंतिय सस्य सणवम दियारहिं बलि वपरितमियमरालहिं वेदरणाणारा इमालहिं सुरपुर विस दरथो शवमालहिं खयरुचाइय युक्कुसुममालदि गंली रहिसणय ला फेरदिंव अंतहिंवड मंगल चरहिं सरिगमपधणी सरसंघ यदि नणारयगेयनिनायदि नबसिरसा। पण चानहिंकरण तथा लावणिरावाद। वेदप्रतहिंराठ पडन परमेसरूसवर्डमुडं सिंहास सिदरासी पुजिए निम्मलुजया जण पत्रिहरु पारनथुणडारा शिवेण सुवर्णसोरुदिवसजसा । जबस यल सुवणसल मलहरण इसिसरण वस्वरण। समधरण सवतरण जरमरण परिदरण अद वरुण वसवण जमपव वपुक्ष्मण सिरिरमा दिवसयर फणिखसर ससिजलया सिरणमा मउडयल मणिसलिल धुविमल कम कमल जयणिदिल विहिकसल पायमुसल यपवलाए सुयमवल दिन कबिल सिवाय कमणयावददल मथम हा स्वर दिय इहरहिय मणि
जिसे सौधर्म्य स्वर्ग के इन्द्र ने स्वयं निर्मित किया था और जो एक योजनप्रमाण क्षेत्र में स्थित था। जो मानस्तम्भों और मणियों के बन्दनवारों, कल्पित कल्पवृक्षों के उद्यानों, जलपरिखाओं और धूलिप्राकारों, चैत्यगृहों, नाना नाट्यशालाओं, सुरों, नटों और विषधरों के स्तोत्रों, कोलाहलों, विद्याधरों के द्वारा उठायी गयी पुष्पमालाओं, भुवनतल आपूरित करनेवाले बजते हुए मंगलवाद्यों, सा रे ग म प ध नी स आदि स्वरों के संघातों, तुम्बुरु और नारद के गीत-विनोदों, उर्वशी और रम्भा के नृत्यभावों तथा बजती हुई वीणाओं के स्वरों से शोभित था। ऐसे समवसरण में राजा ने प्रवेश किया और सामने परमेश्वर को देखा।
घत्ता - सिंहासन के शिखर पर आसीन, पवित्र, लोगों की जन्मपीड़ा का हरण करनेवाले, विश्वरूपी कमल के लिए सूर्य के समान वीर जिनेन्द्र की राजा ने स्तुति प्रारम्भ की ॥ २ ॥
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समस्त भुवनतल का मल दूर करनेवाले ! आपकी जय हो। ऋषियों के शरणस्वरूप श्रेष्ठ चरण तथा समता धारण करनेवाले, भव से तारनेवाले, बुढ़ापा और मृत्यु का हरण करनेवाले, यम, पवन और दनु का दमन करनेवाले, लक्ष्मी से रमण करनेवाले, मुकुटतल के मणियों के जल से जिनके पवित्र चरणकमल धोये गये हैं ऐसे हे समस्त विधान में कुशल, आपकी जय हो (मुनिधर्म और गृहस्थ धर्म की रचना में) । न्यायरूपी मूसल से प्रबलों को आहत करनेवाले, शास्त्रों से सबल, द्विज, कपिल, शिव और सुगत के कुनयों के पथ को नष्ट करनेवाले, मद का नाश करनेवाले, स्व-पर भाव से शून्य तथा दुःख से रहित,
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