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तत्त्वार्थ इनके ग्यारह अंग विषयक श्रुतज्ञान की तो प्रतीति करा ही रहा है। इससे इनकी ऐसी योग्यता के विषय में तो कोई सदेह नहीं है। इन्होंने विरासत में प्राप्त आहेत श्रुत के सभी पदार्थो का संग्रह तत्त्वार्थ में किया है; एक भी महत्त्वपूर्ण बात इन्होंने बिना कथन किये नही कोडी. इसी कारण आचार्य हेमचन्द्र संग्रहकार के रूप में उमास्वाति का स्थान सर्वोत्कृष्ट आँकते हैं । इसी योग्यता के कारण इनके तत्त्वार्थ की व्याख्या करने के लिए श्वेताम्बर-दिगम्बर आचार्य प्रेरित हुए है।
(ग) उमास्वाति की परम्परा दिगम्बर वाचक उमास्वाति को अपनी परम्परा का मानकर मात्र तत्त्वार्थसूत्र को ही इनकी रचना स्वीकार करते है, जब कि श्वेताम्बर इन्हे अपनी परम्परा का मानते है और तत्त्वार्थसूत्र के अतिरिक्त भाष्य को भी इनकी कृति स्वीकार करते है । अब प्रश्न यह है कि उमास्वाति दिगम्बर परम्परा में हुए हैं या श्वेताम्बर परम्परा में अथवा दोनों से भिन्न किसी अन्य परम्परा में हुए है ? इस प्रश्न का उत्तर भाष्य के कर्तत्व विषयक निर्णय से मिल जाता है। भाष्य स्वयं उमास्वाति की कृति है, यह बात प्रमाणों से निर्विवाद सिद्ध है।
१. भाष्य की उपलब्ध टीकाओ में सबसे प्राचीन टीका सिद्धसेन की है। उसमें स्वोपज्ञतासूचक उल्लेख ये है :
प्रतिज्ञातं चानेन "ज्ञानं वक्ष्यामः" इति । अतस्तनुरोधेनैकवचनं चकार आचार्यः। -प्रथम भाग, पृ० ६९
शास्तीति च ग्रन्थकार एव द्विधा आत्मानं विभज्य सूत्रकारभाष्यकाराकारेणैवमाह -पृ०७२
सूत्रकारादविभक्तोपि हि भाष्यकारो।-पृ० २०५
इति श्रीमदर्हत्प्रवचने तत्त्वार्थाधिगमे उमास्वातिवाचकोपज्ञसूत्रभाष्ये भाष्यानुसारिण्यां च टीकायां ..।द्वितीय भाग, पृ० १२०
१. तत्त्वार्थ मे वणित विषयो के मूल को जानने के लिए देखें.-उ० आत्मारामजी द्वारा सम्पादित तत्त्वार्थसूत्र-जैनागमसमन्वय ।
२. उपोमास्वाति संगृहीतार. ।—सिद्धहेम, २. २. ३१ ।
३. देखे-'भारतीय विद्या' के सिधी स्मारक अंक में श्री नाथूरामजी प्रेमी का लेख, पृ० १२८ जिसमें उन्होंने भाष्य को स्वोपज्ञ सिद्ध किया है ।
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