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प्रसिद्ध सैकड़ों ग्रन्थों के रचयिता आ० हरिभद्र ही इस लघु वृत्ति के रचयिता माने जाते हैं। परन्तु इस विषय में कोई असंदिग्ध प्रमाण अभी हमारे सामने नही है।
मुनि श्री जंबूविजयजी ने हरिभद्र और सिद्धसेन दोनों की वृत्तियों की तुलना की है और बतलाया है कि हरिभद्र ने सिद्धसेनीय वृत्ति का अवलंबन लिया है।' यदि यह ठीक है तो कह सकते हैं कि सिद्धसेन की वृत्ति के बाद ही हरिभद्रोय वृत्ति लिखी गई है।
(ङ) यशोभद्र तथा यशोभद्र के शिष्य हरिभद्र ने साढे पाँच अध्यायों की वृत्ति लिखो। इसके बाद तत्त्वार्थभाष्य के शेष सारे भाग की वृत्ति की रचना दो व्यक्तियों के द्वारा हई, यह निश्चित जान पड़ता है। इनमे से एक यशोभद्र नाम के आचार्य हैं और दूसरे उनके शिष्य है, जिनके नाम का पता नही चला । यशोभद्र के इस अज्ञातनामा शिष्य ने दसवें अध्याय के केवल अन्तिम सूत्र के भाष्य पर वृत्ति लिखी है । इसके पहले के अर्थात् हरिभद्र द्वारा छूटे हुए शेष भाष्य-अंश पर यशोभद्र की वृत्ति है । यह बात यशोभद्रसूरि के शिष्य के वचनों से ही स्पष्ट है। ___ श्वेताम्बर परम्परा में यशोभद्र नामक अनेक आचार्य और ग्रन्थकार हुए है। उनमें से प्रस्तुत वृत्ति के लेखक यशोभद्र कौन हैं, यह अज्ञात है । प्रस्तुत यशोभद्र भाष्य की अपूर्ण वृत्ति के रचयिता हरिभद्र के शिष्य थे, इसका कोई निर्णायक प्रमाण उपलब्ध नही है। इसके विपरीत यह तो कहा ही जा सकता है कि यदि ये यशोभद्र उन हरिभद्र के शिष्य होते तो यशोभद्र के जो शिष्य वृत्ति की समाप्ति करते हैं और जिन्होंने हरिभद्र की अपूर्ण वृत्ति का अपने गुरु यशोभद्र के द्वारा निर्वाहित होना लिखा है वे अपने गुरु के नाम के साथ हरिभद्र-शिष्य इत्यादि कोई विशेषण लगाए बिना शायद ही रहते। जो हो, इतना तो अभी विचारणीय है कि ये यशोभद्र कब हए और उनकी दूसरी कृतियाँ हैं या नहीं।
१. देखे-आत्मानन्द प्रकाश, वर्ष ४५, अंक १०, पृ० १९३ । २. देखें-प्रस्तुत प्रस्तावना, पृ० ३४ । ३. देखें-मो० ६० देसाई, जैन साहित्यनो सक्षिप्त इतिहास, परिशिष्ट में यशोभद्र ।
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