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योगदर्शन के साथ प्रस्तुत चारित्रमीमांसा की तुलना को जितना अवकाश है उतना ही यह विषय दिलचस्प है, परन्तु यह एक स्वतंत्र लेख का विषय होने से यहाँ उसको स्थान नहीं, तो भी जिज्ञासुओं का ध्यान खींचने के लिए उनकी स्वतन्त्र तुलनाशक्ति पर विश्वास रखकर नीचे संक्षेप में तुलना करने योग्य सारभूत बातों की एक सूची दी जाती है : तत्त्वार्थसूत्र
योगदर्शन १. कायिक, वाचिक, मानसिक १. कर्माशय ( २. १२)
प्रवृत्तिरूप आस्रव (६. १) २. मानसिक आस्रव (८.१) २. निरोध के विषयरूप में ली
जानेवाली चित्तवृत्तियाँ (१.६) ३. सकषाय व अकषाय-यह ३. क्लिष्ट और अक्लिष्ट दो प्रकार
दो प्रकार का आस्रव (६.५) का कर्माशय ( २. १२) ४. सुख-दुःख जनक शुभ व अशुभ ४. सुख-दु:खजनक पुण्य व अपुण्य आस्रव ( ६. ३-४)
कर्माशय ( २. १४) ५. मिथ्यादर्शन आदि बन्ध के ५. अविद्या आदि पाँच बन्धक __ पांच हेतु ( ८.१)
क्ले श ( २.३) ६. पांचों में मिथ्यादर्शन की ६. पांचों में अविद्या की प्रधानता प्रधानता
(२. ४) ७. आत्मा और कर्म का विलक्षण ७. पुरुष और प्रकृति का विलक्षण __सम्बन्ध ही बन्ध (८. २-३) संयोग ही बन्ध ( २. १७) ८. बन्ध ही शुभ-अशुभ हेय ८. पुरुष व प्रकृति का संयोग ही हेय विपाक का कारण
दुःख का हेतु ( २. १७) ९. अनादि बन्ध मिथ्यादर्शन के ९. अनादि संयोग अविद्या के अधीन
अधीन ( २. २४) १०. कर्मों के अनुभागबन्ध का १०. कर्मो के विपाकजनन का मल आधार कषाय ( ६. ५)
क्लेश ( २. १३) ११. आस्रवनिरोध ही संवर (९.१) ११. चित्तवृत्तिनिरोध ही योग (१.२) १२. गुप्ति, समिति आदि और १२. यम, नियम आदि और अभ्यास,
विविध तप आदि संवर वैराग्य आदि योग के उपाय के उपाय (९. २-३)
(१.१२ से और २. २९ से)
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