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उल्लेख हैं ? क्या दिगम्बर साहित्य में दसवीं सदी से पुराना कोई ऐसा उल्लेख है जिसमें कुन्दकुन्द के शिष्य उमास्वाति के द्वारा तत्त्वार्थसूत्र की रचना करने का सूचन या कथन हो ?
६. 'तत्त्वार्थसूत्रकर्तारं गृध्रपिच्छोपलक्षितम्' यह पद्य कहाँ का है और कितना पुराना है ?
७. पूज्यपाद, अकलंक, विद्यानन्द आदि प्राचीन टीकाकारों ने कहीं भी तत्त्वार्थसत्र-रचयिता के रूप में उमास्वाति का उल्लेख किया है ? यदि नहीं किया है तो बाद में यह मान्यता कैसे चल पडी ?
(ख) प्रेमीजी का पत्र "आपका ता० ६ का कृपापत्र मिला। उमास्वाति कुन्दकुन्द के वंशज हैं, इस बात पर मुझे जरा भी विश्वास नही है। यह दश-कल्पना उस समय की गई है जब तत्त्वार्थसूत्र पर सर्वार्थसिद्धि, श्लोकवार्तिक, राजवातिक आदि टीकाएँ बन चुकी थी और दिगम्बर सम्प्रदाय ने इस ग्रंथ को पूर्णतया अपना लिया था। दसवी शताब्दी के पहले का कोई भी उल्लेख अभी तक मुझे इस सम्बन्ध में नहीं मिला । मेरा विश्वास है कि दिगम्बर सम्प्रदाय में जो बड़े-बड़े विद्वान् ग्रथकर्ता हुए है, प्रायः वे किसी मठ या गद्दी के पट्टधर नहीं थे। परन्तु जिन लोगों ने गर्वावली या पट्टावली बनाई है उनके मस्तक में यह बात भरी हुई थी कि जितने भी आचार्य या ग्रन्यकर्ता होते हैं वे किसी-न-किसी गद्दी के अधिकारी होते हैं। इसलिए उन्होंने पूर्ववर्ती सभो विद्वानो की इसी भ्रमात्मक विचार के अनुसार खतौनी कर डाली है और उन्हे पट्टधर बना डाला है। यह तो उन्हे मालूम नहीं था कि उमास्वाति और कुन्दकुन्द किस-किस समय में हुए हैं। परन्तु चूंकि वे बड़े आचार्य थे और प्राचीन थे, इसलिए उनका सम्बन्ध जोड़ दिया और गुरु-शिष्य या शिष्य-गुरु बना दिया । यह सोचने का उन्होंने कष्ट नहीं उठाया कि कुन्दकुन्द कर्नाटक देश के कुंडकुड ग्राम के निवासी थे और उमास्वाति बिहार मे भ्रमण करनेवाले। उनके सम्बन्ध की कल्पना भी एक तरह से असम्भव है।
श्रुतावतार, आदिपुराण, हरिवंशपुराण, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति आदि प्राचीन ग्रन्थों में जो प्राचीन आचार्य-परम्परा दी हुई है उसमें उमास्वाति का बिलकुल उल्लेख नहीं है। श्रुतावतार में कुंदकुद का उल्लेख है और उन्हे एक बड़ा टीकाकार बतलाया है परन्तु उनके आगे या पीछे उमास्वाति का कोई उल्लेख नहीं है । इन्द्रनन्दी का श्रु तावतार यद्यपि बहुत पुरान
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