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तत्त्वार्थसूत्र
[२. ३७-४९
उत्तर-कार्मण शरीर समस्त शरीरों की जड है, क्योंकि वह कर्मस्वरूप है और कर्म ही सब कार्यो का निमित्त कारण है। तैजस शरीर सबका कारण नहीं । वह सबके साथ अनादिसम्बद्ध रहकर भुक्त-आहार के पाचन आदि मे सहायक होता है । ४१-४३ ।
एक साथ लभ्य शरीरों की संख्या-तैजस और कार्मण ये दो शरीर सभी संसारी जीवों के संसारकाल पर्यन्त अवश्य होते है, पर औदारिक आदि बदलते रहते है, इस प्रकार वे कमी होते है और कभी नही । अतएव यह प्रश्न उठता है कि प्रत्येक जीव के कम-से-कम और अधिक-से-अधिक कितने शरीर हो सकते है ? इसका उत्तर प्रस्तुत सूत्र मे दिया गया है । एक साथ एक संसारी जीव के कमसे-कम दो और अधिक-से-अधिक चार शरीर तक हो सकते है, पॉच कभी नही होते । जब दो होते है तब तैजस और कार्मण, क्योंकि ये दोनों यावत् संसारभावी है। ऐसी स्थिति अन्तराल गति मे ही पाई जाती है, क्योंकि उस समय अन्य कोई शरीर नहीं होता। जब तीन होते है तब तैजस, कार्मण और औदारिक या तैजस, कार्मण और वैक्रिय । पहला प्रकार मनुष्य व तिर्यञ्च में और दूसरा प्रकार देव व नारक मे जन्मकाल से मरण पर्यन्त पाया जाता है। जब चार होते है तब तैजस, कार्मण, औदारिक और वैक्रिय अथवा तैजस, कार्मण, औदारिक और आहारक । पहला विकल्प वैक्रिय-लब्धि के प्रयोग के समय कुछ ही मनुष्यों तथा तिर्यचों में पाया जाता है। दूसरा विकल्प आहारक-लब्धि के प्रयोग के समय चतुर्दश पूर्वधारी मुनि में ही होता है । पाँच शरीर एक साथ किसी के भी नही होते, क्योकि वैक्रिय-लब्धि और आहारक-लब्धि का प्रयोग एक साथ सम्भव नही है।
प्रश्न-उक्त रीति से जब दो, तीन या चार शरीर हों तब उनके साथ एक ही समय मे एक जीव का सम्बन्ध कैसे घटित होगा?
उत्तर-जैसे एक ही प्रदीप का प्रकाश एक साथ अनेक वस्तुओं पर पड़ सकता है, वैसे ही एक जीव के प्रदेश अनेक शरीरों के साथ अविच्छिन्न रूप से सम्बद्ध हो सकते है।
प्रश्न-क्या किसी के कोई एक ही शरीर नही होता ?
उत्तर-नही । सामान्य सिद्धान्त यह है कि तैजस और कार्मण ये दो शरीर कभी अलग नही होते । अतएव कोई एक शरीर कभी सम्भव नहीं, पर किसी आचार्य का मत है कि तेजस शरीर कार्मण की तरह यावत्-संसार-भावी नहीं है,
१. यह मत भाष्य मे निर्दिष्ट है ।
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