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१९८ तत्त्वार्थसूत्र
[८. ६-१४ अवधिज्ञानावरण, मनःपर्यायज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण ये पांच ज्ञानावरण है, तथा चक्षुर्दर्शनावरण, अचक्षुर्दर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण और केवलदर्शनावरण ये चार दर्शनावरण है। उक्त चार के अतिरिक्त अन्य पाँच दर्शनावरण इस प्रकार है-१. जिस कर्म के उदय से ऐसी निद्रा आये कि सुखपूर्वक जागा जा सके वह निद्रावेदनीय दर्शनावरण है। २. जिस कर्म के उदय से निद्रा से जागना अत्यन्त कठिन हो वह निद्रानिद्रा-वेदनीय दर्शनावरण है । ३. जिस कर्म के उदय से बैठे-बैठे या खडे-खड़े ही नीद आ जाय वह प्रचलावेदनीय दर्शनावरण है। ४. जिस कर्म के उदय से चलते-चलते ही नीद आ जाय वह प्रचलाप्रचलावेदनीय दर्शनावरण है । ५ जिस कर्म के उदय से जाग्रत अवस्था मे सोचे हुए काम को निद्रावस्था में करने का सामर्थ्य प्रकट हो जाय वह स्त्यानगृद्धि दर्शनावरण है; इस निद्रा में सहज बल से अनेकगुना अधिक बल प्रकट होता है । ७-८ । - वेदनीय कर्म की प्रकृतियाँ-१. जिस कर्म के उदय से प्राणी को सुख का अनुभव हो वह सातावेदनीय और २. जिस कर्म के उदय से प्राणी को दु.ख का अनुभव हो वह असातावेदनीय है । ९ । ___ दर्शनमोहनीय कर्म की प्रकृतियाँ-१. जिस कर्म के उदय से तत्त्वों के यथार्थ स्वरूप मे रुचि न हो वह मिथ्यात्वमोहनीय है। २. जिस कर्म के उदय-समय में यथार्थता की रुचि या अरुचि न होकर डांवाडोल स्थिति रहे वह मिश्रमोहनीय है। ३. जिसका उदय तात्त्विक रुचि का निमित्त होकर भी औपशमिक या क्षायिकभाववाली तत्त्वरुचि का प्रतिबन्ध करता है वह सम्यक्त्वमोहनीय है।
चारित्रमोहनीय कर्म की पच्चीस प्रकृतियाँ सोलह कषाय-क्रोध, मान, माया और लोभ ये कषाय के मुख्य चार भेद है । तीव्रता के तरतमभाव की दृष्टि से प्रत्येक के चार-चार प्रकार है । जो कर्म क्रोध आदि चार कषायों को इतना अधिक तीव्र बना दे कि जिसके कारण जीव को अनन्तकाल तक संसार मे भ्रमण करना पड़े वह कर्म अनुक्रम से अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ है । जिन कर्मों के उदय से आविर्भाव को प्रास कषाय केवल इतने ही तीव्र हो कि विरति का ही प्रतिबन्ध कर सकें वे अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ है। जिनका विपाक देशविरति का प्रतिबन्ध न करके केवल सर्वविरति का ही प्रतिबन्ध करे वे प्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया और लोभ है। जिनके विपाक की तीव्रता सर्वविरति का प्रतिबन्ध तो न करे लेकिन उसमे स्खलन और मालिन्य उत्पन्न करे वे संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ है ।
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