Book Title: Tattvarthasutra Hindi
Author(s): Umaswati, Umaswami, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 401
________________ : १० : मोक्ष नवें अध्याय मे संवर और निर्जरा का निरूपण किया गया। अब इस दसर्वे और अन्तिम अध्याय मे मोक्षतत्त्व का निरूपण किया जा रहा है । कैवल्य की उत्पत्ति के हेतु मोहक्षयाज्ज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम् । १। मोह के क्षय से और ज्ञानावरण, दर्शनावरण तथा अन्तराय के क्षय से केवलज्ञान प्रकट होता है । मोक्ष प्राप्त होने से पहले केवल-उपयोग ( सर्वज्ञत्व, सर्वदर्शित्व) की उत्पत्ति जैनशासन मे अनिवार्य मानी गई है। इसीलिए मोक्ष के स्वरूप का वर्णन करते समय केवल-उपयोग किन कारणों से होता है, यह पहले ही बतला दिया गया है । प्रतिबन्धक कर्म का नाश हो जाने से सहज चेतना निरावरण हो जाती है और इससे केवल-उपयोग का आविर्भाव होता है । चार प्रतिबन्धक कर्मो मे से पहले मोह ही क्षीण होता है और फिर अन्तर्मुहूर्त के बाद ही ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय इन तीन कर्मों का भी क्षय हो जाता है। मोह सबसे अधिक बलवान् है, अतः उसके नाश के बाद ही अन्य कर्मो का नाश सम्भव है। केवलउपयोग अर्थात् सामान्य और विशेष दोनों प्रकार का सम्पूर्ण बोध । यही स्थिति सर्वज्ञत्व और सर्वदर्शित्व की है । १ । कर्म के आत्यन्तिक क्षय के कारण और मोक्ष का स्वरूप बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्याम् । २। कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्षः । ३। बन्धहेतुओं के अभाव और निर्जरा से कर्मों का आत्यन्तिक क्षय होता है। __ सम्पूर्ण कर्मो का क्षय ही मोक्ष है । - २३५ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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