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नो मनष्यगति से
और अन्तिम से पहले के
इन
का विचार ता) से ही सिद्ध होते हैं और द्रव्यलिङ्ग का विचार
१०.७ ] सिद्धों की विशेषता-द्योतक बारह बातें
२३९ ३ गलि-वर्तमान दष्टि से सिद्धगति म हा सिद्ध हात है। भत हो अन्तिम भाव को लेकर विचार करे तो मनुष्यगति से और भाव को लेकर विचार करें तो चारो गतियो से सिद्ध होते है।
४ लिङ्ग--लिङ्ग वेद या चिह्न को कहते है। पहले जर वर्तमान दृष्टि से अवेद ही सिद्ध होते है। भूत दृष्टि से स्त्री, तीनो वेदो से सिद्ध हो सकते है । दूसरे अर्थ के अनुसार वर्तमान ही सिद्ध होते है, भूत दृष्टि से यदि भावलिङ्ग अर्थात् आन्तरिक र करें तो स्वलिङ्ग ( वीतरागता ) से ही सिद्ध होते है और द्रव्यालि करे तो स्वलिङ्ग ( जैनलिङ्ग), परलिङ्ग ( जैनेतर पन्थी गृहस्थलिङ्ग इन तीनों लिङ्गो से सिद्ध होते है ।
५. तीर्थ--कोई तीर्थंकररूप मे और कोई अतीर्थकररूप में है अतीर्थंकर में कोई तीर्थ प्रवर्तित हो तब होते है और कोई नो तब भी होते है।
६ चारित्र--वर्तमान दृष्टि से सिद्ध जीव न तो चारित्री र अचारित्री । भूत दृष्टि से यदि अन्तिम समय को ले तब तो
पाख्यातचारित्री ही सिद्ध होते है और उसके पूर्व समय को लें तो तीन, चार त से सिद्ध होते है । सामायिक, सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यान
अथवा छेदोपस्थापनीय, सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात ये तीन; सा विशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात ये चार एवं सामायिक परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात ये पाँच चारित्र
७ प्रत्येकबद्धबोधित--प्रत्येकबोधित और बुद्धबोधित दोनो जो किसी के उपदेश के बिना अपनी ज्ञान-शक्ति से ही बोध प्राप्त है ऐसे स्वयंबुद्ध दो प्रकार के है-एक तो अरिहत और दूसरे हा जो किसी एकाध बाह्य निमित्त से वैराग्य और ज्ञान प्राप्त कर ये दोनो प्रत्येकबोधित है। जो दूसरे ज्ञानी से उपदेश ग्रहण कर वे बुद्धबोधित है । इनमें भी कोई तो दूसरे को बोध करानेवाले होते मात्र आत्म-कल्याणसाधक होते है।
८. ज्ञान--वर्तमान दृष्टि से मात्र केवलज्ञानी ही सिद्ध होते से दो, तीन, चार ज्ञानवाले भी सिद्ध होते हैं। दो अर्थात् मति और अर्थात् मति, श्रुत, अवधि अथवा मति, श्रुत, मनःपर्याय; चार अली अवधि और मनःपर्याय ।
चार तथा पाँच चारित्रों
ये
ती
. यथाख्यात ये तीन; सामायिक, परिहारयात ये चार एवं सामायिक, छेदोपस्थापनीय, यथाख्यात ये पाँच चारित्र जानने चाहिए ।
न केवलज्ञानी ही सिद्ध होते है। भूत दृष्टि
तीन
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