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तत्त्वार्थसूत्र
[१०.७ ९. अवगाहना ( ऊँचाई ) जघन्य अंगुलपृथक्त्वहीन सात हाथ और उत्कृ! पांच सौ धनुष के ऊपर धनुषपृथक्त्व जितनी अवगाहना से सिद्ध हो सकते है, यह भूत दृष्टि की अपेक्षा से कहा गया है। वर्तमान दृष्टि से जिस अवगाहना से सिद्ध हुआ हो उसी की दो-तृतीयांश अवगाहना होती है।
१०. अन्तर (व्यवधान)-किसी एक के सिद्ध होने के बाद तुरन्त ही जब दूसरा जीव सिद्ध होता है तो उसे 'निरन्तर-सिद्ध' कहते हैं। जघन्य दो समय और उत्कृष्ट आठ समय तक निरन्तर-सिद्धि चलती रहती है । जब किसी की सिद्धि के बाद अमुक समय व्यतीत हो जाने पर कोई सिद्ध होता है तब वह 'सान्तरसिद्ध' कहलाता है । दोनों के बीच की सिद्धि का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छः भास का होता है।
११. संख्या-एक समय मे जघन्य ( कम-से-कम ) एक और उत्कृष्ट ( अधिक-से-अधिक ) एक सौ आठ सिद्ध होते है।
१२. अल्पबहुत्व-क्षेत्र आदि जिन ग्यारह बातों का विचार ऊपर किया गया है उनके विषय मे संभाव्य भेदों की परस्पर में न्यूनाधिकता का विचार करना ही अल्पबहुत्व है। जैसे क्षेत्रसिद्ध में सहरण-सिद्ध की अपेक्षा जन्मसिद्ध संख्यातगुणाधिक होते है। ऊर्ध्वलोकसिद्ध सबसे कम होते है, अधोलोकसिद्ध उनसे संख्यातगुणाधिक और तिर्यग्लोकसिद्ध उनसे भी संख्यातगुणाधिक होते है । समुद्रसिद्ध सबसे कम होते है और द्वीपसिद्ध उनसे संख्यातगुणाधिक होते है । इसी प्रकार काल आदि प्रत्येक बात से अल्पबहुत्व का विचार किया गया है। विशेष जिज्ञासु अन्य ग्रन्थों से अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकते है ।
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