Book Title: Tattvarthasutra Hindi
Author(s): Umaswati, Umaswami, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 402
________________ २३६ तत्त्वार्थसूत्र [१०.४ एक बार बँधे हुए कर्म का कभी-न-कभी तो क्षय होता ही है, पर वैसे कर्म का बन्धन पुनः सम्भव हो अथवा वैसा कोई कर्म अभी शेष हो तो ऐसी स्थिति मे यह नहीं कहा जा सकता कि कम का आत्यन्तिक क्षय हो गया है । आत्यन्तिक क्षय का अर्थ है पूर्वबद्ध कर्म तथा नवीन कर्म के बाँधने की योग्यता का अभाव । मोक्ष की स्थिति कर्म के आत्यन्तिक क्षय के बिना कदापि सम्भव नही, इसीलिए यहाँ आत्यन्तिक कर्म के क्षय के कारण वर्णित है। वे दो है : १. बन्धहेतुओ का अभाव और २. निर्जरा । बन्धहेतुओं का अभाव हो जाने से नवीन कर्म बंधते नहीं और पहले बँधे हुए कर्मो का अभाव निर्जरा से होता है । बन्धहेतु मिथ्यादर्शन आदि पाँच है जिनका कथन पहले हो चुका है । उनका अभाव समुचित संवर द्वारा होता है और तप, ध्यान आदि द्वारा निर्जरा भी होती है। मोहनीय आदि पूर्वोक्त चार कर्मों का आत्यन्तिक क्षय हो जाने से वीतरागता और सर्वज्ञता प्रकट होती है, फिर भी वेदनीय आदि चार कर्म अत्यन्त विरल रूप में शेष रहते है जिनके कारण मोक्ष नहीं होता। इसीलिए इन शेष विरल कर्मो का क्षय भी आवश्यक है। इसके बाद ही सम्पूर्ण कर्मो का अभाव होने से जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है । यही मोक्ष है । २-३ । अन्य कारण औपशमिकादिभव्यत्वाभावाच्चान्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्यः । ४। क्षायिकसम्यक्त्व, क्षायिकज्ञान, क्षायिकदर्शन और सिद्धत्व के अतिरिक्त औपशमिक आदि भावों तथा भव्यत्व के अभाव से मोक्ष प्रकट होता है। प्रौद्गलिक कर्म के आत्यन्तिक नाश की भांति उस कर्म के साथ कितने ही सापेक्ष भावों का नाश भी मोक्षप्राप्ति के पूर्व आवश्यक है। इसीलिए यहाँ वैसे भावों के नाश का मोक्ष के कारणरूप से कथन किया गया है। ऐसे मुख्य भाव चार है-१. औपशमिक, २. क्षायोपशमिक, ३. औदयिक और ४. पारिणामिक । औपशमिक आदि पहले तीन प्रकार के भाव तो सर्वथा नष्ट होते ही है, पर पारिणामिक भाव के बारे मे यह बात नही है । पारिणामिक भावों में से मात्र भव्यत्व का ही नाश होता है, अन्य का नही, क्योकि जीवत्व, अस्तित्व आदि दूसरे सभी पारिणामिक भाव मोक्ष-अवस्था मे भी रहते है । क्षायिकभाव कर्मसापेक्ष अवश्य है, फिर भी उसका अभाव मोक्ष में नहीं होता। इसीलिए सूत्र मे क्षायिकसम्यक्त्व आदि भावों के अतिरिक्त अन्य भावों के नाश को मोक्ष का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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