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९. ४९ ] निर्ग्रन्थों की विशेषता-द्योतक आठ बाते
२३३ जघन्य श्रुत पुलाक का आचारवस्तु' होता है; बकुश, कुशील एवं निग्रन्थ का अष्ट प्रवचनमाता ( पाँच समिति और तीन गुप्ति ) प्रमाण होता है । स्नातक सर्वज्ञ होने से श्रुत से परे ही होता है ।
३. प्रतिसेवना (विराधना )--पुलाक पाँच महाव्रत और रात्रिभोजनविरमण इन छहों में से किसी भी व्रत का दूसरे के दबाव या बलात्कार के कारण खंडन करता है। कुछ आचार्यो के मत से पुलाक चतुर्थ व्रत का विराधक होता है । बकुश दो प्रकार के होते है-उपकरणबकुश और शरीरबकुश। उपकरण मे आसक्त बकुश नाना प्रकार के मूल्यवान् और अनेक विशेषताओं से युक्त उपकरण चाहता है, संग्रह करता है और नित्य उनका संस्कार करता है। शरीर में आसक्त बकुश शरीर-शोभा के लिए शरीर का संस्कार करता रहता है । प्रतिसेवनाकुशील मूलगुणों की विराधना तो नहीं करता पर उत्तरगुणों की कुछ विराधना करता है। कषायकुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक के द्वारा विराधना होती ही नही ।
४. तीर्थ ( शासन )-पांचों प्रकार के निर्ग्रन्थ तीर्थंकरों के शासन मे होते है । कुछ आचार्यों का मत है कि पुलाक, बकुश और प्रतिसेवनाकुशील ये तीन तीर्थ मे नित्य होते है और शेष कषायकुशील आदि तीर्थ में भी होते है और अतीर्थ में भी होते है।
५. लिङ्ग-लिङ्ग (चिह्न) दो प्रकार का होता है-द्रव्य और भाव । चारित्रगुण भावलिङ्ग है और विशिष्ट वेश आदि बाह्य स्वरूप द्रव्यलिङ्ग है । पाँचों प्रकार के निर्ग्रन्थों मे भावलिङ्ग अवश्य होता है, परन्तु द्रव्यलिङ्ग सबमे होता भी है और नही भी होता।
६. लेश्या-पुलाक में तेज, पद्म और शुक्ल ये अंतिम तीन लेश्याएँ होती है। बकुश और प्रतिसेवनाकुशील में छहों लेश्याएँ होती है। कषायकुशील यदि परिहारविशुद्धि चारित्रवाला हो तब तो तेज आदि तीन लेश्याएँ होती है और यदि सूक्ष्मसम्पराय चारित्रवाला हो तब एक शुक्ल लेश्या ही होती है । निर्ग्रन्थ और स्नातक मे शुक्ल लेश्या ही होती है । अयोगी स्नातक अलेश्य ही होता है ।
७. उपपात (उत्पत्तिस्थान )-पुलाक आदि चार निर्ग्रन्थो का जघन्य उपपात सौधर्म कल्प में पल्योपमपृथवत्व3 स्थितिवाले देवों मे होता है, पुलाक का उत्कृष्ट उपपात सहस्रार कल्प मे बीस सागरोपम की स्थिति मे होता है। बकुश और प्रतिसेवनाकुशील का उत्कृष्ट उपपात आरण और अच्युत कल्प में बाईस
१. इस नाम का नवें पूर्व का तीसरा प्रकरण । २. दिगम्बर ग्रन्थों में चार लेश्याओं का कथन है । ३. दिगम्बर ग्रन्थो में दो सागरोपम की स्थिति का उल्लेख है।
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