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२३२ तत्त्वार्थसूत्र
[ ९. ४९ निर्ग्रन्थ शब्द का तात्त्विक (निश्चयनयसिद्ध ) अर्थ भिन्न है और व्यावहारिक (साम्प्रदायिक ) अर्थ भिन्न है। दोनों अर्थो के एकीकरण को ही यहां निर्ग्रन्थसामान्य मानकर उसी के पाँच भेद कहे गए है। निर्ग्रन्थ वह है जिसमे रागद्वष की गाँठ बिलकुल न रहे । निर्ग्रन्थ शब्द का यही तात्त्विक अर्थ है । अपूर्ण होने पर भी तात्त्विक निर्ग्रन्थता का अभिलाषी हो-भविष्य मे यह स्थिति प्राप्त करना चाहता हो-वह व्यावहारिक निर्ग्रन्थ है । पाँच भेदों मे से प्रथम तीन व्यावहारिक है और शेष दो तात्त्विक । इन पाँच भेदों का स्वरूप इस प्रकार है :
१. पुलाक-मूलगुण तथा उत्तरगुण मे परिपूर्णता प्राप्त न करते हुए भी वीतराग-प्रणीत आगम से कभी विचलित न होनेवाला निर्ग्रन्थ । २. बकुशशरीर और उपकरण के संस्कारों का अनुसरण करनेवाला, सिद्धि तथा कीति का अभिलाषी, सुखशील, अविविक्त ( ससंग), परिवारवाला तथा छेद (चारित्र ) पर्याय की हानि तथा शबल अतिचार दोषों से युक्त निर्ग्रन्थ । ३. कुशील-इसके दो प्रकार है। इन्द्रियों का वशवर्ती होने से उत्तरगुणों की विराधनामूलक प्रवृत्ति करनेवाला प्रतिसेवना-कुशील है और कभी भी तीव्र कषाय के वश न होकर कदाचित् मन्द कषाय के वशीभूत हो जानेवाला कषाय-कुशील है। ४. निर्ग्रन्थ-सर्वज्ञता न होने पर भी जिसमे रागद्वेष का अत्यन्त अभाव हो और अन्तर्मुहूर्त के बाद ही सर्वज्ञता प्रकट होनेवाली हो । ५. स्नातक--जिसमे सर्वज्ञता प्रकट हो गई हो । ४८ ।
निर्ग्रन्थों की विशेषता-द्योतक आठ बातें संयमश्रुतप्रतिसेवनातीर्थलिङ्गलेश्योपपातस्थानविकल्पतःसाध्याः। ४९ ।
संयम, श्रुत, प्रतिसेवना, तीर्थ, लिङ्ग, लेश्या, उपपात और स्थान के भेद से इन निर्ग्रन्थों की विशेषताएँ सिद्ध होती हैं।
ऊपर जिन पाँच प्रकार के निर्ग्रन्थों का वर्णन हुआ है उनका विशेष स्वरूप जानने के लिए यहाँ यह विचार किया गया है कि संयम आदि आठ बातों का प्रत्येक निर्ग्रन्थ से कितना सम्बन्ध है।
१. संयम-सामायिक आदि पाँच संयमों मे से सामायिक और छेदोपस्थापनीय इन दो संयमों में पुलाक, बकुश और प्रतिसेवनाकुशील ये तीन निर्ग्रन्थ होते है; कषायकुशील उक्त दो एवं परिहारविशुद्धि व सूक्ष्मसम्पराय इन चार संयमो में होता है । निर्ग्रन्थ और स्नातक एकमात्र यथाख्यातसंयमवाले होते है ।
२. श्रुत-पुलाक, बकुश और प्रतिसेवनाकुशील इन तीनों का उत्कृष्ट श्रुत पूर्ण दशपूर्व और कषायकुशील एवं निर्ग्रन्थ का उत्कृष्ट श्रुत चतुर्दश पूर्व होता है;
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