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उत्तरप्रकृति-भेदों की संख्या और नामनिर्देश
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नौ नोकषाय - १. हास्य की उत्पादक प्रकृतिवाला कर्म हास्यमोहनीय है । २- ३. कही प्रीति और कही अप्रीति के उत्पादक कर्म अनुक्रम से रतिमोहनीय और अरतिमोहनीय है । ४. भयशीलता का जनक भयमोहनीय है । ५. शोकशीलता का जनक शोकमोहनीय है । ६. घृणाशीलता का जनक जुगुप्सामोहनीय है । ७. स्त्रैणभाव-विकार का उत्पादक कर्म स्त्रीवेद है । ८. पौरुषभाव-विकार का उत्पादक कर्म पुरुषवेद है । ९. नपुंसकभाव-विकार का उत्पादक कर्म नपुंसकवेद है । ये नौ मुख्य कषाय के सहचारी एवं उद्दीपक होने से नोकषाय है । १० ।
श्रायुकर्म के चार प्रकार -- जिन कर्मों के उदय से देव, मनुष्य, तियंच और नरक गति मिलती है वे क्रमशः देव, मनुष्य, तिर्यंच और नरक के आयुष्य है । ११ ।
नामकर्म की बयालीस प्रकृतियाँ
चौदह पिण्डप्रकृतियाँ- १. सुख-दुःख भोगने के योग्य पर्याय विशेषरूप देवादि चार गतियों को प्राप्त करानेवाला कर्म गति है । २. एकेन्द्रियत्व से लेकर पंचेन्द्रियत्व तक समान परिणाम को अनुभव करानेवाला कर्म जाति है । ३. औदारिक आदि शरीर प्राप्त करानेवाला कर्म शरीर है । ४. शरीरगत अङ्गों और उपाङ्गों का निमित्तभूत कर्म अङ्गोपाङ्ग है । ५- ६. प्रथम गृहोत औदारिक आदि पुद्गलों के साथ ग्रहण किए जानेवाले नवीन पुद्गलों का सम्बन्ध जो कर्म कराता है वह बन्धन है और बद्धपुद्गलों को शरीर के नानाविध आकारों में व्यवस्थित करनेवाला कर्म संघात है । ७-८. अस्थिबन्ध की विशिष्ट रचनारूप संहनन और शरीर की विविध आकृतियों का निमित्त कर्म संस्थान है । ९ १२. शरीरगत श्वेत आदि पाँच वर्ण, सुरभि आदि दो गन्ध, तिक्त आदि पाँच रस, शीत आदि आठ स्पर्श - इनके नियामक कर्म अनुक्रम से वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श है । १३. विग्रह द्वारा जन्मान्तर- गमन के समय जीव को आकाश-प्रदेश की श्रेणी के अनुसार गमन करानेवाला कर्म आनुपूर्वी हैं । १४. प्रशस्त और अप्रशस्त गमन का नियामक कर्म विहायोगति है । ये चौदह पिण्डप्रकृतियाँ कहलाती है । इनके अवान्तर भेद भी है, इसीलिए यह नामकरण है ।
त्रसदशक और स्थावरदशक -- -१-२. जिस कर्म के उदय से स्वतन्त्रभाव से गमन करने की शक्ति प्राप्त हो वह त्रस और इसके विपरीत जिसके उदय से वैसी शक्ति प्राप्त न हो वह स्थावर है । ३-४. जिस कर्म के उदय से जीवों को चर्मचक्षु गोचर बादर शरीर की प्राप्ति हो वह बादर, इसके विपरीत जिससे चर्मचक्षु के अगोचर सूक्ष्मशरीर की प्राप्ति हो वह सूक्ष्म है । ५- ६. जिस कर्म के उदय
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