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५. १२-१६ ]
द्रव्यों का स्थितिक्षेत्र
शक्ति मर्त द्रव्य में होती है । इसी अन्तर के कारण पुद्गलस्कन्ध के छोटे-बड़े सभी अंशों को अवयव कहते हैं । अवयव अर्थात् अलग होनेवाला अंश ।
परमाणु भी पुद्गल होने से मूर्त है किन्तु उसका विभाग नहीं होता, क्योंकि वह आकाश के प्रदेश की तरह पुद्गल का छोटे-से-छोटा अंश है । परमाणु का परिमाण सबसे छोटा है, अतः वह भी अविभाज्य अंश है ।।
यहाँ परमाणु के खंड या अंश न होने की बात द्रव्य ( इकाई ) रूप से कही गई है, पर्यायरूप से नही। पर्यायरूप में तो उसके भी अंशों की कल्पना की गई है, क्योंकि एक ही परमाणु मे वर्ण, गन्ध, रस आदि अनेक पर्याय है और वे सभी उस द्रव्य के भावरूप अंश ही है। इसलिए एक परमाणु के भी अनेक भावपरमाणु माने जाते है ।
प्रश्न-धर्म आदि के प्रदेश और पुद्गल के परमाणु में क्या अन्तर है ?
उत्तर-परिमाण की दृष्टि से कोई अन्तर नही है। जितने क्षेत्र में परमाणु रह सकता है उसे प्रदेश कहते है । परमाणु अविभाज्य अंश होने से उसके समाने योग्य क्षेत्र भी अविभाज्य ही होगा । अतः परमाणु और तत्परिमित प्रदेशसंज्ञक क्षेत्र दोनों ही परिमाण की दृष्टि से समान है, तो भी उनमें यह अन्तर है कि परमाणु अपने अंशीभूत स्कन्ध से पृथक हो सकता है, परन्तु धर्म आदि द्रव्यों के प्रदेश अपने स्कन्ध से पृथक नही हो सकते ।
प्रश्न-नवें सूत्र में 'अनन्त' पद है उससे पुद्गल द्रव्य के अनेक अनन्त प्रदेश होने का अर्थ तो निकल सकता है, परन्तु अनन्तानन्त प्रदेश होने का अर्थ किस पद से निकाला गया है ?
उत्तर-'अनन्त' पद सामान्य है, वह सब प्रकार की अनन्त संख्याओं का बोध कराता है । अतः उसी से अनन्तानन्त अर्थ प्राप्त हो जाता है । ७-११ ।
द्रव्यों का स्थितिक्षेत्र लोकाकाशेऽवगाहः। १२ । धर्माधर्मयोः कृत्स्ने । १३ । एकप्रदेशादिषु भाज्यः पुद्गलानाम् । १४ । असङ्ख्य यभागादिषु जीवानाम् । १५ ।
प्रदेशसंहारविसर्गाभ्यां प्रदीपवत् । १६ । आधेय ( ठहरनेवाले ) द्रव्यों की स्थिति लोकाकाश में ही है। धर्म और अधर्म द्रव्यों की स्थिति समग्र लोकाकाश में है।
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