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५. २३-२४ ]
पुद्गल के असाधारण पर्याय
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तरह पृथ्वी, जल, तेज और वायु ये सभी पुद्गल के रूप में समान है अर्थात् ये सभी स्पर्श आदि चतुर्गुण से युक्त है। जैन-दर्शन मे मन भी पौद्गलिक होने से स्पर्श आदि गुणवाला ही है । स्पर्श आठ प्रकार का है-कठिन, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष । रस पाँच है-कडुवा, चरपरा, कसैला, खट्टा और मीठा । गन्ध दो है--सुगन्ध और दुर्गन्ध । वर्ण पाँच है--काला, नीला ( हरा), लाल, पीला और सफेद । इस तरह स्पर्श आदि के कुल बीस भेद है, पर इनमें से प्रत्येक के संख्यात, असंख्यात और अनन्त भेद तरतमभाव से होते है । मृदु तो एक गुण है, पर प्रत्येक मृदु वस्तु की मृदुता मे कुछ-न-कुछ तरतम्ता होती है । इस कारण सामान्य रूप से मृदुत्व का स्पर्श एक होने पर भी तारतम्य के अनुसार उसके संख्यात, असख्यात और अनन्त भेद हो जाते है । यही बात कठिन आदि अन्य स्पर्श तथा रस आदि अन्य गुणों के विषय में है।
शब्द कोई गुण नहीं है, जैसे कि वैशेषिक, नैयायिक आदि दर्शनों में माना जाता है । वह भाषावर्गणा के पुद्गलों का एक विशिष्ट प्रकार का परिणाम है। निमित्त-भेद से उसके अनेक भेद हो जाते है । जो शब्द आत्मा के प्रयत्न से उत्पन्न होता है वह प्रयोगज है और जो किसी के प्रयत्न के बिना ही उत्पन्न होता है वह वैस्रसिक है, जैसे बादलों की गर्जना । प्रयोगज शब्द के छः प्रकार है-१. भाषामनुष्य आदि की व्यक्त और पशु, पक्षी आदि की अव्यक्त ऐसी अनेकविध भाषाएँ, २. तत-चमडे से लपेटे हुए वाद्यों का अर्थात् मृदंग, पटह आदि का शब्द; ३. वितत--तारवाले वीणा, सारंगी आदि वाद्यों का शब्द; ४. घनझालर, घंट आदि का शब्द, ५. शुषिर-फूंककर बजाये जानेवाले शंख, बाँसुरी आदि का शब्द; ६. संघर्ष-लकड़ी आदि के घर्षण से उत्पन्न शब्द ।
परस्पर आश्लेषरूप बन्ध के भी प्रायोगिक और वैस्रसिक ये दो भेद हैं। जीव और शरीर का सम्बन्ध तथा लाख और लकड़ी का सम्बन्ध प्रयत्नसापेक्ष होने से प्रायोगिक बन्ध है । बिजली, मेघ, इन्द्रधनुष आदि का प्रयत्न-निरपेक्ष पौद्गलिक संश्लेष वैनसिक बन्ध है ।
सूक्ष्मत्व और स्थूलत्व के अन्त्य तथा आपेक्षिक ये दो-दो भेद है । जो सूक्ष्मत्व तथा स्थूलत्व दोनों एक ही वस्तु में अपेक्षा-भेद से घटित न हों वे अन्त्य और जो घटित हों वे आपेक्षिक है । परमाणुओं का सूक्ष्मत्व और जगद्-व्यापी महास्कन्ध का स्थूलत्व अन्त्य है, क्योंकि अन्य पुद्गल की अपेक्षा परमाणुओं मे स्थूलत्व और महास्कन्ध में सूक्ष्मत्व घटित नही होता । द्वयणुक आदि मध्यवर्ती स्कन्धों के सूक्ष्मत्व व स्थूलत्व दोनों आपेक्षिक है, जैसे आँवले का सूक्ष्मत्व और बिल्व का स्थूलत्व । आँवला बिल्व से छोटा है अतः सूक्ष्म है और बिल्व आंवले से बड़ा है अतः स्थूल
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