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अनेकान्त-स्वरूप का समर्थन : व्याख्यान्तर
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परस्पर विरुद्ध किन्तु प्रमाण-सिद्ध धर्मो का समन्वय एक वस्तु मे कैसे हो सकता है, तथा विद्यमान अनेक धर्मो मे से कभी एक का और कभी दूसरे का प्रतिपादन क्यों होता है, यही इस सूत्र में दर्शाया गया है ।
_ 'आत्मा सत् है' इस प्रतीति या उक्ति मे सत्व का जो भान होता है वह सब प्रकार से घटित नहीं हो सकता । यदि ऐसा हो तो आत्मा चेतना आदि स्व-रूप की भाँति घटादि पर-रूप से भी सत् सिद्ध होगी अर्थात् उसमे चेतना की तरह घटत्व भी भासमान होगा जिससे उसका विशिष्ट स्वरूप सिद्ध ही न होगा। विशिष्ट स्वरूप का अर्थ ही यह है कि वह स्व-रूप से सत् और पर-रूप से असत् है । इस प्रकार अपेक्षा-विशेष से सत्त्व और अपेक्षान्तर से असत्त्व ये दोनो धर्म आत्मा मे सिद्ध होते है । सत्त्व-असत्त्व की भांति नित्यत्व-अनित्यत्व धर्म भी उसमें सिद्ध है। द्रव्य ( सामान्य ) दृष्टि से नित्यत्व और पर्याय (विशेष ) दृष्टि से अनित्यत्व सिद्ध होता है। इसी प्रकार परस्पर विरुद्ध दिखाई देनेवाले, परन्तु अपेक्षाभेद से सिद्ध और भी एकत्व-अनेकत्व आदि धर्मो का समन्वय आत्मा आदि सब वस्तुओं में अबाधित है। इसलिए सभी पदार्थ अनेकधर्मात्मक माने जाते है ।
व्याख्यान्तर
अपितानपितसिद्धेः प्रत्येक वस्तु अनेक प्रकार से व्यवहार्य है, क्योंकि अर्पणा और अनपणा से अर्थात् विवक्षा के अनुसार प्रधान एवं अप्रधान भाव से व्यवहार की सिद्धि ( उपपत्ति ) होती है ।
अपेक्षाभेद से सिद्ध अनेक धर्मों में से भी कभी किसी एक धर्म द्वारा और कभी उसके विरोधी दूसरे धर्म द्वारा वस्तु का व्यवहार होता है जो अप्रामाणिक या बाधित नहीं है, क्योंकि विद्यमान सब धर्म भी एक साथ विवक्षित नहीं होते । प्रयोजनानुसार कभी एक की और कभी दूसरे की विवक्षा होती है। जिस समय जिसकी विवक्षा हो उस समय वह प्रधान और दूसरा अप्रधान होता है। जो कर्म का कर्ता है वही उसके फल का भोक्ता होता है । इस कर्म और तज्जन्य फल के सामान्याधिकरण्य को दिखाने के लिए आत्मा मे द्रव्यदृष्टि से सिद्ध नित्यत्व की विवक्षा की जाती है। उस समय उसका पर्यायदृष्टि से सिद्ध अनित्यत्व विवक्षित न होने से गौण होता है, परन्तु कर्तृत्वकाल की अपेक्षा भोक्तृत्व काल मे आत्मा की अवस्था में परिवर्तन हो जाता है । इस कर्मकालीन और फलकालीन अवस्थाभेद को दिखाने के लिए जब पर्यायदृष्टि से सिद्ध अनित्यत्व का प्रतिपादन किया जाता है तब द्रव्यदृष्टि से सिद्ध नित्यत्व प्रधान नही रहता । इस
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