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८. १]
बन्धुहेतुओं की व्याख्या कषाय और योग इन दो बन्धहलुओं का धन है तथा यात्मिक विकास की चढाव-उतारवाली भूमिकास्वरूप गुणस्थानों में बंधनेवाली कर्मप्रकृलियों के सरलमभाव के कारण को दर्शाने के लिए मिथ्यात्ब, अविरति, कषाय और योग बन चार बन्धहेतुओं का कथन है । जिस गुणास्थान में जितने अधिक बन्धहेतु होंगे उस गुणस्थान में कर्मप्रकृतियों का बन्ध भी उतना ही अधिक होगा भौर जहाँ ये बन्धहेतु कम होगे वहाँ कर्मप्रकृतियों का बन्ध भी कम ही होगा। इस प्रकार मिथ्यात्व आदि चार हेतुओ के कथन की परम्परा अलग-अलग गुणस्थानों में तरतमभाव को प्राप्त होनेवाले कर्मबन्ध के कारण के स्पष्टीकरण के लिए है और कषाय एवं योग इन दो हेतुओं के कथन की परम्परा किसी एक ही कर्म मे सम्भावित चार अंशों के कारण का पृथक्करण करने के लिए है। पाँच बन्षहेतुनों की परम्परा का आशय चार बन्धहेतुओं की परम्परा से किसी प्रकार भी भिन्न नहीं है और यदि है भी तो केवल इतना ही कि जिज्ञासु शिष्यो को बन्धहेतुओ का विस्तार से ज्ञान हो जाय ।
बन्धहेतुओं की व्याख्या मिथ्यात्व-मिथ्यात्व का अर्थ है मिथ्यादर्शन, जो सम्यग्दर्शन से विपरीत होता है। सम्यग्दर्शन वस्तु का तात्त्विक श्रद्धान होने से विपरीतदर्शन दो तरह का फलित होता है-१. वस्तुविषयक यथार्थ श्रद्धान का अभाव और २. वस्तु का अयथार्थ श्रद्धान । पहले और दूसरे मे इतना ही अन्तर है कि पहला बिलकुल मूढदशा मे भी हो सकता है, जब कि दूसरा विचारदशा में ही होता है। अभिनिवेश के कारण विचारशक्ति का विकास होने पर भी जब किसी एक ही दृष्टि को पकड लिया जाता है तब अतत्त्व मे पक्षपात होने से वह दृष्टि मिथ्यादर्शन कहलाती है जो उपदेशजन्य होने से अभिगृहीत कही जाती है । जब विचारदशा जाग्रत न हुई हो तब अनादिकालीन आवरण के कारण केवल मूढता होती है। उस समय तत्त्व का श्रद्धान नही होता तो अतत्त्व का भी श्रद्धान नही होता । इस दशा में मात्र मूढता होने से उसे तत्त्व का अश्रद्धान कह सकते है । वह नैसर्गिक या उपदेशनिरपेक्ष होने से अनभिगृहीत कहा जाता है । दृष्टि या पन्थ सम्बन्धी सभी ऐकान्तिक कदाग्रह अभिगृहीत मिथ्यादर्शन है जो मनुष्य जैसी विकसित जाति मे हो सकते है। दूसरा अनभिगृहीत मिथ्यादर्शन कीट, पतंग आदि मूच्छित चेतनावाली जातियों में ही सम्भव है ।
अविरति, प्रमाव-अविरति अर्थात् दोषों से विरत न होना। प्रमाद अर्थात् आत्मविस्मरण अर्थात् कुशल कार्यो मे अनादर, कर्तव्य-अकर्तव्य की स्मृति मे असावधानी ।
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