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तत्त्वार्थ सूत्र
[ ५. ३८-३९
चारित्र, वीर्य आदि परिमित गुण ही साधारणबुद्धि छद्मस्थ की कल्पना में आते है, सब गुण नही । इसी प्रकार पुद्गल के भी रूप-रस- गन्ध-स्पर्श आदि कुछ ही गुण कल्पना मे आते है, सब गुण नही । कारण यह है कि आत्मा या पुद्गल द्रव्य के समस्त पर्यायप्रवाहों को जानना विशिष्ट ज्ञान के बिना सम्भव नही । जो-जो पर्याय- प्रवाह साधारण बुद्धिगम्य है उनके कारणभूत गुणो का व्यवहार किया जाता है, इसलिए वे गुण विकल्प्य है । आत्मा के चेतना, आनन्द, चारित्र, वीर्य आदि गुण विकल्प्य अर्थात् विचार व वाणी के पुद्गल के रूप आदि गुण विकल्प्य है । शेष सब अविकल्प्य ज्ञानगम्य ही है ।
गोचर है और हैं जो केवल
त्रिकालवर्ती अनन्त पर्यायों के एक-एक प्रवाह की कारणभूत ( गुण ) और ऐसी अनन्त शक्तियों का समुदाय द्रव्य है, यह सापेक्ष है । अभेददृष्टि से पर्याय अपने-अपने कारणभूत गुणस्वरूप स्वरूप होने से द्रव्य गुणपर्यायात्मक ही कहा जाता है ।
द्रव्य में सब गुण समान नही है । कुछ साधारण होते है अर्थात् सब द्रव्यों में पाये जाते है, जैसे अस्तित्व, प्रदेशत्व, ज्ञेयत्व आदि और कुछ असाधारण होते है अर्थात् एक-एक द्रव्य मे पाये जाते है जैसे चेतना, रूप आदि । असाधारण गुण और तज्जन्य पर्याय के कारण ही प्रत्येक द्रव्य एक-दूसरे से भिन्न है ।
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय द्रव्यों के गुण तथा पर्यायों का विचार भी इसी प्रकार करना चाहिए । यहाँ यह बात ज्ञातव्य है कि पुद्गल द्रव्य मूर्त है, अतः उसके गुण तथा पर्याय गुरु लघु कहे जाते है । परन्तु शेष सब द्रव्य अमूर्त है अतः उनके गुण और पर्याय अगुरुलघु कहे जाते है । ३७ । काल तथा उसके पर्याय
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कालश्चेत्येके । ३८ । सोऽनन्तसमयः । ३९ ।
कोई आचार्य काल को भी द्रव्य कहते हैं ।
वह अनन्त समयवाला है ।
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१. दिगम्बर परम्परा मे 'कालश्च' सूत्रपाठ है । तदनुसार वहाँ काल को स्वतन्त्र द्रव्य माना गया है । वहाँ प्रस्तुत सूत्र को एकदेशीय मत-परक न मानकर सिद्धान्तरूप से ही काल को स्वतन्त्र द्रव्य मानने का सूत्रकार का तात्पर्य बतलाया गया है । जो काल को स्वतन्त्र द्रव्य नही मानते और जो मानते है वे सब अपने-अपने मन्तव्य की पुष्टि किस प्रकार करते है, काल का स्वरूप कैसा बतलाते है, इसमे और भी कितने मतभेद है। इत्यादि बातो को विशेष रूप से जानने के लिए देखे – हिन्दी चौथा कर्मग्रन्थ, कालविषयक परिशिष्ट, पृ० १५७ ।
एक-एक शक्ति कथन भी भेद
और गुण द्रव्य
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