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७ १९-३२] व्रत और शील के अतिचारो की संख्या
१८९ देशावकाशिकव्रत के अतिचार--१. आनयनप्रयोग--जितने प्रदेश का नियम लिया हो, आवश्यकता पड़ने पर स्वयं न जाकर संदेश आदि द्वारा दूसरे से उसके बाहर की वस्तु मँगवा लेना। २. प्रेष्यप्रयोग- स्थान सम्बन्धी स्वीकृत मर्यादा के बाहर काम पड़ने पर स्वयं न जाना और न दूसरे से ही उस वस्तु को मँगवाना किन्तु नौकर आदि से आज्ञापूर्वक वहाँ बैठे-बिठाए काम करा लेना । ३. शब्दानुपात--स्वीकृत मर्यादा के बाहर स्थित व्यक्ति को बुलाकर काम कराने के लिए खाँसी आदि द्वारा उसे पास आने के लिए सावधान करना। ४. रूपानुपात--किसी तरह का शब्द न कर आकृति आदि बतलाकर दूसरे को अपने पास आने के लिए सावधान करना । ५ पुद्गलक्षेप --कंकड, ढेला आदि फेककर किसी को अपने पास आने के लिए सूचना देना । २६ ।
अनर्थदंडविरमणव्रत के अतिचार ---१. कन्दर्प-रागवश असभ्य भाषण तथा परिहास आदि करना । २. कौत्कुच्य-परिहास व अनिष्ट भाषण के अतिरिक्त नटभांड जैसी शारीरिक कुचेष्टाएँ करना । ३. मौखर्य-निर्लज्जता से सम्बन्धरहित एवं अधिक बकवाद करना । ४. असमीक्ष्याधिकरण-अपनी आवश्यकता का बिना विचार किए अनेक प्रकार के सावध उपकरण दूसरे को उसके काम के लिए देते रहना। ५. उपभोगाधिक्य आवश्यकता से अधिक वस्त्र, आभूषण, तेल, चन्दन आदि रखना । २७ ।
__ सामायिकवत के अतिचार--१. कायदुष्प्रणिधान-हाथ, पैर आदि अंगों को व्यर्थ और बुरी तरह से चलाते रहना। २. वचनदुष्प्रणिधान-संस्कार-रहित तथा अर्थ-रहित एवं हानिकारक भाषा बोलना । ३. मनोदुष्प्रणिधान-क्रोध, द्रोह आदि विकारों के वश होकर चिन्तन आदि मनोव्यापार करना। ४. अनादर-सामायिक में उत्साह का न होना अर्थात् समय होने पर भी प्रवृत्त न होना अथवा ज्योंत्यों प्रवृत्ति करना। ५. स्मृति-अनुपस्थापन-एकाग्रता का अभाव अर्थात् चित्त के अव्यवस्थित होने से सामायिक की स्मृति का न रहना । २८ ।
पौषधव्रत के अतिचार-१. अप्रत्यवेक्षित तथा अप्रमाणित मे उत्सर्ग-आँखों से बिना देखे ही कि कोई जीव है या नही, एवं कोमल उपकरण से प्रमार्जन किए बिना ही जहां-तहाँ मल, मूत्र, श्लेष्म आदि का त्याग करना। २. अप्रत्यवेक्षित और अप्रमार्जित मे आदाननिक्षेप-इसी प्रकार प्रत्यवेक्षण और प्रमार्जन किए बिना ही लकडी, चौकी आदि वस्तुओ को लेना व रखना। ३ अप्रत्यवेक्षित तथा अप्रमार्जित संस्तार का उपक्रम-प्रत्यवेक्षण एवं प्रमार्जन किए बिना ही बिछौना करना या आसन बिछाना। ४. अनादर-पोषध में उत्साहरहित ज्यों-त्यों करके
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