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तत्वार्थसूत्र
[ ६.६
१. कायिकी क्रिया — दुष्टभाव से युक्त होकर प्रयत्न करना अर्थात् किसी काम के लिए तत्पर होना, २. आधिकरणिकी क्रिया - हिंसाकारी साधनों को ग्रहण करना, ३. प्रादोषिकी क्रिया - क्रोध के आवेश से होनेवाली क्रिया, ४ पारितापनिकी क्रिया --- प्राणियों को सतानेवाली क्रिया, ५. प्राणातिपातिकी क्रियाप्राणियों को प्राणों' से वियुक्त करने की क्रिया ।
१. दर्शन क्रिया - रागवश रमणीय रूप को देखने की वृत्ति, २. स्पर्शन क्रिया - प्रमादवश स्पर्श करने योग्य वस्तुओं के स्पर्शानुभव की वृत्ति, ३. प्रात्ययिकी क्रिया - नये शस्त्रों का निर्माण, ४. समन्तानुपातन क्रिया —स्त्री, पुरुष और पशुओं के जाने-आने की जगह पर मल-मूत्र आदि त्यागना, ५. अनाभोग क्रिया - जिस जगह का अवलोकन और प्रमार्जन नहीं किया गया है वहाँ शरीर आदि रखना ।
१. स्वहस्त क्रिया — दूसरे के करने की क्रिया को स्वयं कर लेना, २ . निस क्रिया - पापकारी प्रवृत्ति के लिए अनुमति देना ३ विदार क्रिया दूसरे के किये गए पापकार्य को प्रकट करना, ४ . आज्ञाव्यापादिकी क्रिया - व्रत पालन करने की शक्ति के अभाव मे शास्त्रोक्त आज्ञा के विपरीत प्ररूपणा करना, ५. अनवकांक्ष क्रिया - धूर्तता और आलस्य से शास्त्रोक्त विधि का अनादर करना ।
१. आरम्भ क्रिया-काटने-पीटने और घात करने मे स्वयं रत रहना और are लोगों में वैसी प्रवृत्ति देखकर प्रसन्न होना, २. पारिग्रहिकी क्रिया --- परिह का नाश न होने के लिए की जानेवाली क्रिया, ३. माया क्रिया--ज्ञान, दर्शन आदि के विषय मे दूसरो को ठगना, ४ . मिथ्यादर्शन क्रिया -- मिथ्यादृष्टि के अनुकूल प्रवृत्ति करने-कराने मे निरत मनुष्य को 'तू ठीक करता है' इत्यादि रूप मे प्रशंसा आदि द्वारा मिथ्यात्व मे दृढ करना, ५ . अप्रत्याख्यान क्रिया-संयम घातिकर्म के प्रभाव के कारण पापध्यापार से निवृत्त न होना ।
पाँच-पांच क्रियाओ के उक्त पाँच पञ्चकों में से केवल ईर्यापथिकी क्रिया साम्परायिक कर्म के आसव की कारण नही है, शेष सब क्रियाएँ कषायप्रेरित होने के कारण साम्परायिक कर्म के बन्ध की कारण है । यहाँ उक्त सब क्रियाओं का निर्देश साम्परायिक कर्मास्रव - बाहुल्य की दृष्टि से किया गया है । यद्यपि अव्रत, इन्द्रियप्रवृत्ति और उक्त क्रियाओं की बन्धकारणता रागद्वेष पर अवलम्बित है, इसलिए कस्बुकः रागद्वेष - कषाय ही साम्परायिक कर्म का बन्धकारण है, तथापि कषाय से अम अव्रत आदि का बन्धकारणरूप से कथन सूत्र में इसलिए है कि कषायजन्य कौन
१. पाँच इन्द्रियों, मन-वचन-काय ये तीन बल, उच्छ्वासनिःश्वास और आयु ये दस प्राण है ।
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