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५. ३६ ]
परिणाम का स्वरूप
१४१
स्निग्धत्व और रूक्षत्व दोनों स्पर्श-विशेष है । ये अपनी-अपनी जाति की अपेक्षा एक-एक रूप होने पर भी परिणमन की तरतमता के कारण अनेक प्रकार के होते है । तरतमता यहाँ तक होती है कि निकृष्ट स्निग्धत्व और निकृष्ट रूक्षत्व तथा उत्कृष्ट स्निग्धत्व और उत्कृष्ट रूक्षत्व के बीच अनन्तानन्त अशों का अन्तर रहता है, जैसे बकरी और ऊँटनी के दूध के स्निग्धत्व में । स्निग्धत्व दोनों मे ही होता है परन्तु एक मे अत्यल्प होता है और दूसरे मे अत्यधिक । तरतमतावाले स्निग्धत्व और रूक्षत्व परिणामों में जो परिणाम सबसे निकृष्ट अर्थात् अविभाज्य हो उसे जचन्य अंश कहते है । जघन्य को छोडकर शेष सभी जघन्येतर कहे जाते है । जघन्येतर में मध्यम और उत्कृष्ट संख्या आ जाती है । सबसे अधिक स्निग्धत्व परिणाम उत्कृष्ट है और जघन्य तथा उत्कृष्ट के बीच के सभी परिणाम मध्यम है । जघन्य स्निग्धत्व की अपेक्षा उत्कृष्ट स्निग्धत्व अनन्तानन्त गुना अधिक होने से यदि जघन्य स्निग्धत्व को एक अंश कहा जाय तो उत्कृष्ट स्निग्धत्व को अनन्तानन्त अंशपरिमित मानना चाहिए । दो, तीन यावत् संख्यात, असंख्यात, अनन्त और एक कम उत्कृष्ट तक के सभी अंश मध्यम है ।
यहाँ सदृश का अर्थ है स्निग्ध का स्निग्ध के साथ या रूक्ष का रूक्ष के साथ बन्ध होना और विसदृश का अर्थ है स्निग्ध का रूक्ष के साथ बन्ध होना । एक अश जघन्य है और उससे एक अधिक अर्थात् दो अंश एकाधिक है । दो अंश अधिक हों तब द्वयधिक और तीन अंश अधिक हो तब त्र्यधिक। इसी तरह चार अंश अधिक होने पर चतुरधिक यावत् अनन्तानन्त - अधिक कहलाता है । सम अर्थात् समसंख्या । दोनों ओर अशो की संख्या समान हो तब वह सम है । दो अंश जघन्येतर का सम जघन्येतर दो अंश है, दो अंश जघन्येतर का एकाधिक जघन्येतर तीन अंश है, दो अंश जघन्येतर का द्वयधिक जघन्येतर चार अंश है, दो अंश जघन्येतर का त्र्यधिक जघन्येतर पाँच अंश है और चतुरधिक जघन्येतर छः अंश है । इसी प्रकार तीन आदि से अनन्तांश जघन्येतर तक के सम, एकाधिक, द्वयधिक और त्र्यादि अधिक जघन्येतर होते है । ३३-३५ । परिणाम का स्वरूप
बन्धे समाधिक पारिणामिकौ' । ३६ ।
बन्ध के समय सम और अधिक गुण, सम तथा हीन गुण के परिणमन करानेवाले होते हैं ।
१. दिगम्बर परम्परा मे 'बन्धेऽधिको पारिणामिको च' सूत्रपाठ है । तदनुसार एक सम का दूसरे सम को अपने स्वरूप मे मिलाना इष्ट नही है । केवल अधिक का हीन को अपने स्वरूप मे मिला लेना ही इष्ट है ।
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