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५. ३२-३५ ]
बन्ध के सामान्य विधान के अपवाद
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समान अंश होने पर सदृश अर्थात् स्निग्ध के साथ स्निग्ध अवयवों का तथा रूक्ष के साथ रूक्ष अवयवों का बन्ध नहीं होता।
दो अंश अधिकवाले आदि अवयवों का बन्ध होता है।
इन सूत्रों में से पहला सूत्र बन्ध का निषेधक है। इसके अनुसार जिन परमाणुओं में स्निग्धत्व या रूक्षत्व का अंश जघन्य हो उन जघन्यगुण परमाणुओं का पारस्परिक बन्ध नही होता। इस निषेध से यह फलित होता है कि मध्यम और उत्कृष्टसंख्यक अंशोंवाले स्निग्ध व रूक्ष सभी अवयवों का पारस्परिक बन्ध हो सकता है । परन्तु इसमे भी अपवाद है, जिसका वर्णन आगे के सूत्र में है। उसके अनुसार समान अंशवाले सदृश अवयवों का पारस्परिक बन्ध नहीं होता। इससे समान अंशोंवाले स्निग्ध तथा रुक्ष परमाणुओं का स्कन्ध नहीं बनता। इस निषेध का भी फलित अर्थ यह है कि असमान गुणवाले सदृश अवयवों का बन्ध होता है । इस फलित अर्थ का संकोच करके तीसरे सूत्र मे सदृश अवयवों के असमान अंशों की बन्धोपयोगी मर्यादा नियत की गई है। तदनुसार असमान अंशवाले सदृश अवयवों मे भी जब एक अवयव का स्निग्धत्व या रूक्षत्व दो अंश, तीन अंश, चार अंश आदि अधिक हो तभी उन दो सदृश अवयवों का बन्ध होता है। इसलिए यदि एक अवयव के स्निग्धत्व या रूक्षत्व की अपेक्षा दूसरे अवयव का स्निग्धत्व या रूक्षत्व केवल एक अंश अधिक हो तो उन दो सदृश अवयवों का बन्ध नहीं होता।
श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में प्रस्तुत तीनों सूत्रों मे पाठभेद नही है, पर अर्थभेद अवश्य है। अर्थभेद की दृष्टि से ये तीन बातें ध्यान देने योग्य है--- १ जघन्यगुण परमाणु एक संख्यावाला हो, तब बन्ध का होना या न होना, २ सूत्र ३५ के 'आदि' पद से तीन आदि संख्या ली जाय या नही, ३. सूत्र ३५ का बन्धविधान केवल सदृश अवयवों के लिए माना जाय अथवा नही।
१. भाष्य और वृत्ति के अनुसार दोनो परमाणु जब जघन्य गुणवाले हों तभी उनका बन्ध निषिद्ध है, अर्थात् एक परमाणु जघन्यगुण हो और दूसरा जघन्यगुण न हो तभी उनका बन्ध होता है । परन्तु सर्वार्थसिद्धि आदि सभी दिगम्बर व्याख्याओं के अनुसार जघन्यगुण युक्त दो परमाणुओ के पारस्परिक बन्ध की तरह एक जघन्यगुण परमाणु का दूसरे अजघन्यगुण परमाणु के साथ भी बन्ध नहीं होता।
२. भाष्य और वृत्ति के अनुसार सूत्र ३५ के 'आदि' पद का तीन आदि संख्या अर्थ लिया जाता है । अतएव उसमे किसी एक अवयव से दूसरे अवयव मे स्निग्धत्व या रूक्षत्व के अंश दो, तीन, चार तथा बढ़ते-बढ़ते संख्यात, असंख्यात,
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