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तत्त्वार्थसूत्र
[५. २८
चार, संख्यात, असंख्यात, अनन्त और अनन्तानन्त परमाणुओं के मिलने मात्र से त्रिप्रदेश, चतुष्प्रदेश, संख्यातप्रदेश, असंख्यातप्रदेश, अनन्तप्रदेश तथा अनन्तानन्तप्रदेश स्कन्ध बनते है जो सभी संघातजन्य है । किसी बडे स्कन्ध के टूटने मात्र से जो छोटे-छोटे स्कन्ध होते हैं वे भेदजन्य है। ये भी द्विप्रदेश से अनन्तानन्तप्रदेश तक होते है । जब किसी एक स्कन्ध के टूटने पर उसके अवयव के साथ उसी समय दूसरा कोई द्रव्य मिल जाने से नया स्कन्ध बनता है तब वह स्कन्ध भेद-सघातजन्य कहलाता है। ऐसे स्कन्ध भी द्विप्रदेश से लेकर अनन्तानन्तप्रदेश तक हो सकते है । दो से अधिक प्रदेशवाले स्कन्ध जैसे तीन, चार आदि अलग-अलग परमाणुओं के मिलने से भी त्रिप्रदेश, चतुष्प्रदेश आदि स्कन्ध होते है और द्विप्रदेश स्कन्ध के साथ एक परमाणु मिलने से भी त्रिप्रदेश तथा द्विप्रदेश या त्रिप्रदेश स्कन्ध के साथ अनुक्रम से दो या एक परमाणु मिलने से भी चतुष्प्रदेश स्कन्ध बनता है।
अणु द्रव्य किसी द्रव्य का कार्य नहीं है, इसलिए उसकी उत्पत्ति मे दो द्रव्यों का संघात सम्भव नही । यों तो परमाणु नित्य माना गया है, तथापि यहाँ उसकी उत्पत्ति पर्यायदृष्टि से कही गई है, अर्थात् परमाणु द्रव्यरूप मे तो नित्य ही है, पर पर्यायदृष्टि से जन्य भी है। परमाणु का कभी स्कन्ध का अवयव बनकर सामुदायिक अवस्था मे रहना और कभी स्कन्ध से अलग होकर विशकलित अवस्था में रहना ये सभी परमाणु के पर्याय ( अवस्थाविशेष ) है । विशकलित अवस्था स्कन्ध के भेद से ही उत्पन्न होती है । इसलिए यहाँ भेद से अणु की उत्पत्ति के कथन का अभिप्राय इतना ही है कि विशकलित अवस्थावाला परमाणु भेद का कार्य है, शुद्ध परमाणु नही । २६-२७ ।
अचाक्षुष स्कन्ध के चाक्षुष बनने मे हेतु
भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषाः । २८ । भेद और संघात से ही चाक्षुष स्कन्ध बनते हैं। अचाक्षुष स्कन्ध निमित्त पाकर चाक्षुष बन सकता है, इसी का निर्देश इस सूत्र
पुद्गल के परिणाम त्रिविध है, अतः कोई पुद्गल-स्कन्ध अचाक्षुष (चक्षु से अग्राह्य ) होता है तो कोई चाक्षुष ( चक्षु-ग्राह्य ) । जो स्कन्ध पहले सूक्ष्म होने से अचाक्षुष हो वह निमित्तवश सूक्ष्मत्व परिणाम छोडकर बादर (स्थूल ) परिणामविशिष्ट बनने से चाक्षुष हो सकता है। उस स्कन्ध के ऐसा होने मे भेद तथा संघात दोनों हेतु अपेक्षित हैं । जब किसी स्कन्ध में सूक्ष्मत्व परिणाम की निवृत्ति
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