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५. २८ ]
अचाक्षुष स्कन्ध के चाक्षुष बनने मे हेतु
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से स्थूलत्व परिणाम उत्पन्न होता है तब कुछ नये अणु उस स्कन्ध मे मिल जाते है । मिलते ही नही, कुछ अणु उस स्कन्ध से अलग भी हो जाते है | सूक्ष्मत्व परिणाम की निवृत्तिपूर्वक स्थूलत्व परिणाम की उत्पत्ति न केवल संघात अर्थात् अणुओं के मिलने मात्र से होती है और न केवल भेद अर्थात् अणुओ के अलग होने मात्र से । स्थूलत्व ( बादरत्व ) परिणाम के अतिरिक्त कोई स्कन्ध चाक्षुष होता ही नही । इसीलिए यहाँ नियमपूर्वक कहा गया है कि चाक्षुष स्कन्ध भेद और संघात दोनों से बनता है ।
'भेद' शब्द के दो अर्थ है- - १. स्कन्ध का टूटना अर्थात् उसमे से अणुओं का अलग होना और २. पूर्व - परिणाम निवृत्त होने से दूसरे परिणाम का उत्पन्न होना । इनमे से पहले अर्थ के अनुसार ऊपर सूत्रार्थ लिखा गया है । दूसरे अर्थ के अनुसार सूत्र की व्याख्या इस प्रकार है—– जब कोई सूक्ष्म स्कन्ध नेत्र-ग्राह्य बादर परिणाम को प्राप्त करता है, अर्थात् अचाक्षुष न रहकर चाक्षुष बनता है, तब उसके ऐसा होने मे स्थूल परिणाम अपेक्षित है जो विशिष्ट अनन्ताणु संख्या ( संघात ) सापेक्ष है । केवल सूक्ष्मत्वरूप पूर्व - परिणाम की निवृत्तिपूर्वक नवीन स्थूलत्व - परिणाम चाक्षुष बनने का कारण नही और केवल विशिष्ट अनन्त संख्या भी चाक्षुष बनने में कारण नही, किन्तु परिणाम ( भेद ) और उक्त संख्या संघात दोनों ही स्कन्ध के चाक्षुष बनने कारण है ।
यद्यपि सूत्रगत 'चाक्षुष' पद से तो चक्षु ग्राह्य स्कन्ध का ही बोध होता है, तथापि यहाँ चक्षु पद से समस्त इन्द्रियो का लाक्षणिक बोध अभिप्रेत है । तदनुसार सूत्र का अर्थ यह होता है कि सभी अतीन्द्रिय स्कन्धो के इन्द्रियग्राह्य बनने में भेद और संघात दो ही हेतु अपेक्षित है । पौद्गलिक परिणाम की अमर्यादित विचित्रता के कारण जैसे पहले के अतीन्द्रिय स्कन्ध भी बाद मे भेद तथा संघातरूप निमित्त से इन्द्रियग्राह्य बन जाते है, वैसे ही स्थूल स्कन्ध सूक्ष्म बन जाते हैं । इतना ही नही, पारिणामिक विचित्रता के कारण अधिक इन्द्रियों के द्वारा ग्राह्य स्कन्ध अल्प इन्द्रियग्राह्य बन जाता है । जैसे लवण, हिगु आदि पदार्थ नेत्र, स्पर्शन, रसना और घ्राण इन चारो इन्द्रियो द्वारा ग्राह्य होते हैं, परन्तु जल में गल जाने से केवल रसना और घ्राण इन दो इन्द्रियो से ही ग्रहण हो सकते है ।
प्रश्न – स्कन्ध के चाक्षुष बनने में दो कारण बतलाये गए, पर अचाक्षुष स्कन्ध की उत्पत्ति के कारण क्यों नही बतलाये गए ?
उत्तर — सूत्र २६ मे सामान्य रूप से स्कन्ध मात्र की उत्पत्ति के तीन हेतुओं का कथन है । यहाँ तो केवल विशेष स्कन्ध की उत्पत्ति के अर्थात् अचाक्षुष से
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