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तत्त्वार्थसूत्र
[ ५.७-११
आकाशस्यानन्ताः ।९। सङ्घय याऽसङ्घय याश्च पुद्गलानाम् । १० ।
नाणोः।११। धर्म और अधर्म के प्रदेश असंख्यात है। एक जीव के प्रदेश असख्यात है। आकाश के प्रदेश अनन्त हैं ।
पुदगल द्रव्य के प्रदेश संख्यात, असंख्यात और अनन्त है । अणु ( परमाणु ) के प्रदेश नहीं होते ।
धर्म, अधर्म आदि चार अजोव और जीव इन पाँच द्रव्यो को 'काय' कहकर पहले यह निर्दिष्ट किया गया है कि पाँच द्रव्य अस्तिकाय अर्थात् प्रदेशप्रचयरूप है । परन्तु उनके प्रदेशों की विशेष सख्या यहाँ पहले-पहल दर्शायी गई है ।
धर्मास्तिकाय और अधर्मास्किाय दोनों द्रव्यों के प्रदेश असंख्यात है। प्रदेश अर्थात् एक ऐसा सूक्ष्म अंश जिसके दूसरे अंश की कल्पना भी नही की जा सकती । ऐसे अविभाज्य सूक्ष्म को निरंश-अंश भी कहते है । धर्म व अधर्म ये दोनों द्रव्य एक-एक इकाईरूप है और उनके प्रदेश ( अविभाज्य अंश ) असंख्यातअसंख्यात है। उक्त दोनों द्रव्य ऐसे अखंड स्कन्धरूप है जिनके असंख्यात अविभाज्य सूक्ष्म अंश केवल बुद्धि से कल्पित किये जा सकते है, वे वस्तुभूत स्कन्ध से पृथक नही किये जा सकते ।
जीव द्रव्य इकाईरूप मे अनन्त है। प्रत्येक जीव एक अखंड इकाई है, जो धर्मास्तिकाय की तरह असंख्यात-प्रदेशी है।
आकाश द्रव्य अन्य सब द्रव्यों से बड़ा स्कन्ध है क्योकि वह अनन्तप्रदेशी है ।
पुद्गल द्रव्य के स्कन्ध अन्य चार द्रव्यो की तरह नियत रूप नही है, क्योंकि कोई पुद्गल-स्कन्ध संख्यात प्रदेशों का होता है, कोई असंख्यात प्रदेशों का, कोई अनन्त प्रदेशो का और कोई अनन्तानन्त प्रदेशो का ।
पुद्गल तथा अन्य द्रव्यों मे अन्तर यह है कि पुद्गल के प्रदेश अपने स्कन्ध से अलग-अलग हो सकते है, पर अन्य चार द्रव्यों के अपने प्रदेश अपने-अपने स्कन्ध से अलग नही हो सकते, क्योंकि पुद्गल के अतिरिक्त चारो द्रव्य अमूर्त है, और अमूर्त का स्वभाव है खण्डित न होना । पुद्गल द्रव्य मूर्त है, मूर्त के खंड हो सकते है, क्योकि संश्लेष और विश्लेष के द्वारा मिलने की तथा अलग होने की
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