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तत्त्वार्थसूत्र
[ ३. ७-१८
तीन पल्योपम और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है । तिर्यञ्चों की स्थिति भी मनुष्य के बराबर उत्कृष्ट तीन पल्योपम और जघन्य अन्तर्मुहूर्त है।
भव और कायभेद से स्थिति दो प्रकार की है। कोई भी जन्म पाकर उसमें जघन्य अथवा उत्कृष्ट जितने काल तक जी सकता है वह भवस्थिति है और बीच मे किसी दूसरी जाति मे जन्म न ग्रहण करके किसी एक ही जाति मे बारबार उत्पन्न होना कायस्थिति है । ऊपर मनुष्यों और तिर्यञ्चों की जघन्य तथा उत्कृष्ट भवस्थिति का निर्देश किया गया है। मनुष्य हो या तिर्यञ्च, सबकी जघन्य कायस्थिति तो भवस्थिति को भांति अन्तर्मुहूर्त ही है । मनुष्य की उत्कृष्ट कायस्थिति सात अथवा आठ भवग्रहण की है, अर्थात् किसी भी मनुष्य को लगातार सात अथवा आठ जन्म तक रहने के बाद अवश्य मनुष्यजाति छोड़ देनी पड़ती है।
सब तिर्यञ्चों की कायस्थिति भवस्थिति की तरह समान नही है । अतः तिर्यञ्चों की दोनों स्थितियों का विस्तृत वर्णन यहाँ आवश्यक है। पृथ्वीकाय की भवस्थिति बाईस हजार वर्ष, जलकाय की भवस्थिति सात हजार वर्ष, वायुकाय की भवस्थिति तीन हजार वर्ष और तेजःकाय की भवस्थिति तीन अहोरात्र है । इन चारों की कायस्थिति असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी प्रमाण है । वनस्पतिकाय की भवस्थिति दस हजार वर्ष और कायस्थिति अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी प्रमाण है। द्वीन्द्रिय की भवस्थिति बारह वर्ष, त्रीन्द्रिय की उनचास अहोरात्र और चतुरिन्द्रिय की छ: मास है। इन तीनों की कायस्थिति संख्यात हजार वर्ष है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में गर्भज और संमूछिम की भवस्थिति भिन्न-भिन्न है । गर्भजों में जलचर, उरग और भुजग की भवस्थिति करोडपूर्व, पक्षियों की भवस्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग और चतुष्पद स्थलचर की भवस्थिति तीन पल्योपम है । संमूछिम जीवों मे जलचर को भवस्थिति करोड़पूर्व, उरग की भवस्थिति त्रेपन हजार वर्ष, भुजग को भवस्थिति बयालीस हजार वर्ष, पक्षियों की भवस्थिति बहत्तर हजार वर्ष और स्थलचरो की भवस्थिति चौरासी हजार वर्ष है। गर्भज पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों की कायस्थिति सात या आठ जन्मग्रहण और संमूछिम जीवों की कायस्थिति सात जन्मग्रहण प्रमाण है । १७-१८ ।
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