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तत्त्वार्थसूत्र
[ ४. २१-२२
जघन्य स्थितिवाले देवों का गतिसामर्थ्य इतना घट जाता है कि वे अधिक-सेअधिक तीसरे नरक तक हो जा पाते है। शक्ति चाहे अधिक हो, पर कोई देव तीसरे नरक से नीचे न गया है और न जायेगा।
२ शरीर--शरीर का परिमाण पहले-दूसरे स्वर्ग में सात हाथ का, तीसरेचौथे स्वर्ग में छः हाय का, पाँचवें-छठे स्वर्ग मे पाँच हाथ का, सातवें-आठवें स्वर्ग में चार हाथ का, नवे से बारहवे स्वर्ग तक मे तीन-तीन हाथ का, नौ ग्रैवेयकों मे दो हाथ का और अनुत्तरविमानो में एक हाथ का होता है।
३. परिग्रह-स्वर्गो में विमानों का परिग्रह ऊपर-ऊपर कम होता जाता है। वह इस प्रकार है-पहले स्वर्ग मे बत्तीस लाख, दूसरे मे अट्ठाईस लाख, तीसरे में बारह लाख, चौथे में आठ लाख, पाँचवे में चार लाख, छठे में पचास हजार, सातवें मे चालीस हजार, आठवें में छः हजार, नवें से बारहवे तक में सात सौ, अधोवर्ती तीन ग्रेवेयकों में एक सौ ग्यारह, मध्यवर्ती तीन गवेयकों में एक सौ सात, ऊार के तीन ग्रैवेयकों मे सौ और अनुत्तर में केवल पाँच विमान है।
४. अभिमान-अभिमान अर्थात् अहंकार । स्थान, परिवार, शक्ति, विषय, विभूति, स्थिति आदि के कारण अभिमान उत्पन्न होता है । यह अभिमान कषायों की मन्दता के कारण ऊपर-ऊपर के देवों में उत्तरोत्तर कम होता जाता है।
इनके अतिरिक्त और भी पांच बातें देवों के सम्बन्ध में ज्ञातव्य है जो सूत्र मे नही कही गई है-१. उच्छवास, २. आहार, ३. वेदना, ४. उपपात और ५. अनुभाव वे इस प्रकार है :
१. उच्छवास-जैसे-जैसे देवों की आयुस्थिति बढ़ती जाती है वैसे-वैसे उच्छ्वास का समय भी बढ़ता जाता है, जैसे दस हजार वर्ष की आयुवाले देवों का एक-एक उच्छ्वास सात-सात स्तोक में होता है । एक पल्योपम की आयुवाले देवों का उच्छ्वास एक दिन में एक ही होता है। सागरोपम की आयुवाले देवों के विषय में यह नियम है कि जिनकी आयु जितने सागरोपम की हो उनका एकएक उच्छ्वास उतने पक्ष में होता है ।
२ प्राहार-आहार के विषय में यह नियम है कि दस हजार वर्ष की आयुवाले देव एक-एक दिन बीच मे छोड़कर आहार ग्रहण करते है । पल्योपम की आयुवाले दिनपृथक्त्व' के बाद आहार लेते है । सागरोपम की स्थितिवाले देवों के विषय में यह नियम है कि जिनकी आयु जितने सागरोपम की हो वे देव उतने हजार वर्ष के बाद आहार ग्रहण करते है ।
१. दो की संख्या से लेकर नौ की संख्या तक पृथक्त्व का व्यवहार होता है ।
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