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४. ३९-४२ ]
वैमानिक देवों की जधन्य स्थिति
सौधर्म आदि देवलोकों में क्रमशः निम्नोक्त स्थिति है। सौधर्म में स्थिति दो सागरोपम है। ऐशान में स्थिति कुछ अधिक दो सागरोपम है। सानत्कुमार में स्थिति सात सागरोपम है।
माहेन्द्र से आरण-अच्युत तक क्रमशः कुछ अधिक सात सागरोपम, तीन से अधिक सात सागरोपम, सात से अधिक सात सागरोपम, दस से अधिक सात सागरोपम, ग्यारह से अधिक सात सागरोपम, तेरह से अधिक सात सागरोपम, पन्द्रह से अधिक सात सागरोपम स्थिति है।
आरण-अच्युत के ऊपर नौ अवेयक, चार विजयादि और सर्वार्थसिद्ध में स्थिति अनुक्रम से एक-एक सागरोपम अधिक है।
यहाँ वैमानिक देवों की क्रमशः जो स्थिति वर्णित है वह उत्कृष्ट है । पहले स्वर्ग मे दो सागरोपम, दूसरे मे दो सागरोपम से कुछ अधिक, तीसरे मे सात सागरोपम, चौथे में सात सागरोपम से कुछ अधिक, पांचवें मे दस सागरोपम, छठे मे चौदह सागरोपम, सातवें में सत्रह सागरोपम, आठवें मे अठारह सागरोपम, नवें-दसवें मे बीस सागरोपम और ग्यारहवें-बारहवे मे बाईस सागरोपम की स्थिति है । प्रथम प्रैवेयक मे तेईस सागरोपम, दूसरे मे चौबीस सागरोपम, इसी प्रकार एक-एक बढ़ते-बढते नवे प्रैवेयक मे इकतीस सागरोपम की स्थिति है। पहले चार अनुत्तर विमानों में बत्तीस' और सर्वार्थसिद्ध मे तैतीस सागरोपम की स्थिति है। ३३-३८ ।
वैमानिक देवों की जघन्य स्थिति अपरा पल्योपममधिकं च । ३९ । सागरोपमे । ४०। अधिके च । ४१॥
परतः परतः पूर्वा पूर्वाऽनन्तरा । ४२ । अपरा ( जघन्य स्थिति ) पल्योपम और कुछ अधिक पल्योपम की है।
दो सागरोपम की है।
१. दिगम्बर टीकाओ मे और कही-कही श्वेताम्बर ग्रन्थो मे भी विजयादि चार विमानों में उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम मानी गई है। देखे-इसी अध्याय के सत्र ४२ का भाष्य । संग्रहणी ग्रन्थ मे भी उत्कृष्ट स्थिति तैतीस सागरोपम कही गई है।
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